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मेरे देश की राष्ट्र भाषा कौन-सी है

निरूत्तर थे सारे दस्तावेज जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं का वर्चस्व था।

अगर देखा जाय तो‌ कोई भी देश बिना राष्ट्र भाषा के गूंगा और बहरा होता है।
मैं पूछती हूॅं कि मेरा देश जन्म से ही गूंगा बहरा था या अब बना दिया गया है ,परन्तु क्यों ?
हिंदी वैश्विक पटल पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल रही है परंतु अभी भी हिंदी बोलते अभिभावकों को अंग्रेजी स्कूलों में हीन भावना से देखा जाता है ।
हमारे देश में अंग्रेजी में संवाद करने को बुद्धिमत्ता का पर्याय समझा जाता है।
यह कैसी विडंबना है और हमारे देश की यह कैसी मानसिक गुलामी है।
हम स्वतंत्र हुए हैं या उसका भ्रम पाले हुए हैं।
हिंदी बोलने वालों के आंकड़े गूगल पर उपलब्ध है ।
अपने देश के बाहर अन्य देशों में हिंदी भाषियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
अंतरराष्ट्रीय संवादों में भी हिंदी अपना प्रभुत्व स्थापित कर चुकी है और यह समय समय पर सिद्ध भी हुआ है।
अपने देश में क्षेत्रीय भाषाओं
का तानाशाही रवैया , राजनीतिक मतभेद इत्यादि कारणों ने देश को मूक बना दिया आखिर कब तक देश सांकेतिक भाषा में वार्तालाप करेगा?
क्षेत्रीय भाषाओं ने सरकारी दस्तावेजों में अपना वर्चस्व कायम किया ठीक है परंतु हिंदी भाषियों का एक प्रदेश से दूसरे प्रदेशों में जाकर और सर्वाइव करने में कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
उन पर हमेशा क्षेत्रीय भाषा सीखने का दवाब रहता है।
मुझ पर भी क्षेत्रीय भाषा सीखने का दवाब बनाया गया ,
मैंने कहा यदि मैं सीखूं तो सभी भाषाएं
पर कोई एक क्षेत्रीय भाषा सीखने का मतलब है दूसरे के साथ पक्षपात मेरे तो हर प्रांत की भाषा के लिए आदरभाव है ।
मुझे किसी से बैर नहीं सभी अपनी है लेकिन क्या करूं मुझे हिंदी से ही इतना स्नेह है!
मेरा प्रश्न सिर्फ इतना है कि यदि मुद्राओं को क्षेत्रीय भाषाओं में बदलवा लें और दिखाएं अपना रूतबा
कहने का तात्पर्य यह है कि मराठी में 100 का नोट बनवा लें, तमिल वाले तमिल में, बंगाली भाषा,इस तरह भारत में जितनी बोलियां उसमें नोट बने होना चाहिए फिर अपनी मदर टंग का रूतबा झाड़ें ।
यहां मातृभाषा शब्द का प्रयोग इसलिए नहीं किया क्योंकि मातृ शब्द अथाह सागर है जो अपने भीतर सभी को समेटे हुए है और विशाल और गहरा है उसकी तलहटी में आपसी सौहार्द्र ही दिखाई देता है ।

कभी ना अंत होने वाले भाषाई झगड़ों को भूलकर
यदि हम एकजुट हो जाएं तो हिंदी को राष्ट्रभाषा होने से कोई नहीं रोक सकता।
वैसे भी आज निरन्तर परिवर्तन शील युग में और मनुष्य का अपनी जीविका के लिए लम्बी यात्रा अनिवार्य हो गई है तो सब प्रांत के लोग एक को एक सूत्र में बांधने का कार्य एक राज भाषा ही कर सकती है।
राष्ट्र भाषा भारत के मानचित्र पर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही आओ हम सब अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ाएं उसको सम्मान पूर्वक अपनी निज भाषा में बोलने का अधिकार दिलवाएं ।
जय हिंद
जय मां भारती
वंदे मातरम्

रजनी साहू ‘सुधा’

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