कहानी कृतघ्न
विधा -कहानी कृतघ्न उफ ! ये दिन देखने थे। हाय विधाता. …..सुलोचना अचेत हो गई। चूर-चूर हो चुके थे उसके सुनहले सपने !एक दिन था जब मीनू को आँगन में इठलाते देखवात्सल्यमयी माँ भाव-विभोर हो उठती । अपने हृदय-कुसुम मीनू के भविष्य को लेकर ऊँची उड़ानें भरती। आज वह भग्न- [...]