कालिदास के काव्य में लोकशिक्षा प्रगति एवं संयम जीवन के संतुलन को साधने का पायदान – प्रोफेसर सदाशिव द्विवेदी
कालिदास के काव्य में लोकशिक्षा
प्रगति एवं संयम जीवन के संतुलन को साधने का पायदान – प्रोफेसर सदाशिव द्विवेदी
साझा संसार फाउंडेशन, नीदरलैंड्स की पहल पर ‘संस्कृत की वैश्विक विरासत’ आयोजन के अंतर्गत ‘कालिदास के काव्य में लोक शिक्षा’ विषय पर ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ गुरुकुल लंदन की संस्थापिका इंदु बारौठ ने सरस्वती वंदना से किया। साझा संसार फाउंडेशन नीदरलैंड के अध्यक्ष रामा तक्षक ने ‘संस्कृत की वैश्विक विरासत’ आयोजन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि
संस्कृत साहित्य वैश्विक विरासत है। मानव सभ्यता के लिए संस्कृत का योगदान अद्वितीय है। इसे नकारा नहीं जा सकता है। जीवन से जुड़ने और जीवन को स्वस्थ एवं आनंदमय तरीके से जीना संस्कृत साहित्य बहुत सहजता और सरलता से सिखाता है। आज के दिन, संस्कृत की शिक्षा, संस्कृत साहित्य में लिखे, जीवन के ज्ञान को पढ़ने, सुनने का अधिकार धरती के हर बासिंदे को है। किन्तु आज संस्कृत ही नहीं यहाँ तक कि हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि का ह्रास हो रहा है। यह चिंता का विषय है।
बीबीसी से सेवानिवृत्त श्री विजय राणा ने इस आयोजन के मुख्य अतिथि वक्ता प्रोफेसर सदाशिव कुमार द्विवेदी का विस्तृत परिचय देकर बताया कि वे काशी विश्वविद्यालय स्थित भारत अध्ययन केंद्र के निदेशक हैं। साथ ही वे काशी विश्वविद्यालय के समन्वयक, कवि, आलोचक, सम्पादक, समीक्षक, अनुवादक व शैक्षणिक प्रशासक भी हैं। द्विवेदी जी ने संस्कृत साहित्य में अद्वितीय कार्य किया है। ऐसे विद्वान हमारे समाज को, हमारी धरोहर को सहेज कर रखने तथा हमारी आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिये प्रयत्नशील हैं। हमारे लिए यह बहुत गर्व की बात है। कालिदास भारतीय संस्कृति के शाश्वत प्रेरणा स्रोत रहे हैं।
द्विवेदी जी ने अपने वक्तव्य में बताया की आचार्य कालिदास को आधारभूत साहित्य उपलब्ध था। संपूर्ण वैदिक
वाड्ग्मय साहित्य यानि चारों संहिताएँ, षड़्वेदांग, उपनिषद, छंदोबद्ध काव्य, जिसमें महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण और महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत व साथ ही महाकवि भाष्य के सभी नाटक भी कालिदास को उपलब्ध थे। यहाँ तक की बौद्ध जातक कथाएँ भी उपलब्ध थी।
इसी पृष्ठभूमि को उद्धृत करते हुए द्विवेदी जी ने बताया कि कालिदास के काव्य में लोक शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है।
उनका काव्य न केवल प्रणय की बारीकियों, काव्य-सौंदर्य और कलात्मकता से परिपूर्ण है बल्कि उनमें जीवन-मूल्य, नैतिकता, और समाजोपयोगी संदेश भी निहित हैं। उनके ग्रंथों में प्रकृति, समाज, धर्म और संस्कृति के प्रति आदरभाव स्पष्ट दिखता है।
उनके काव्य में प्रगति एवं संयम का सामञ्जस्य, जीवन के संतुलन का सुंदर उदाहरण है। कालिदास के अनुसार ईश्वर आपकी आँख में उपस्थित है। शिवत्व की प्रतिष्ठा ही जीवन का श्रेय है। श्रेष्ठ व्यक्ति अहंकार का प्रदर्शन नहीं करते।
कालिदास की रचनाएँ भारतीय जीवन को गहराई से समझाने और समाज को शिक्षित करने का कार्य करती हैं।
उन्होंने प्रकृति को मानवीय जीवन का अनिवार्य अंग बताते हुए कहा :
“क: कवीनाम् उपमानमात्स्यद्य:।”
वहीं कालिदास ने धर्म और नैतिकता का प्रचार किया है। उन्होंने लिखा “सा विद्या या विमुक्तये।”
महाकवि कालिदास के सृजन को रेखांकित करते हुए द्विवेदी जी ने बताया कि वे कृतिकार ही नहीं, वे एक समीक्षक भी थे
आयोजन से जुड़े श्रोताओं में राजेंद्र जी, मधुरेश जी, सदाशिव जी आदि ने अपने मन में उठ रहे कुछ प्रश्नों को द्विवेदी जी के समक्ष रखा। द्विवेदी जी ने विस्तार पूर्वक उत्तर प्रश्नकर्ताओं की जिज्ञासा को शांत किया।
अपने धन्यवाद ज्ञापन में बीबीसी लंदन से ही सेवानिवृत्त श्री शिवकांत शर्मा ने संस्कृत की वैश्विक विरासत के प्रति अपने उद्गार प्रकट करते हुए बताया कि उपादान, रचना का कलेवर है। कविता से शिक्षा मिलती है। उनकी दृष्टि में उद्दात सार्वभौम बातों के साथ, लोक तक पहुँचाने वाला काव्य कालजयी है। ऐसे काव्य को जितनी बार भी पढ़ा या सुना जाये, आपको नये अर्थ की प्राप्ति होती है। यह हमारी जम्मेदारी है कि नई पीढ़ी को, अपनी विरासत की महत्ता को, समझा कर सिखाने का प्रयास किया जाये। शिवकांत जी ने यह भी कहा कि संस्कृत ऐसा शाश्वत साहित्य है जो मनुष्य निर्माण के साथ साथ स्वस्थ समाज निर्माण में सहायक है।
इस आयोजन का संचालन इंदु बारौट एंव तकनीकी संचालन राजेंद्र शर्मा ने किया।