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( पुस्तक समीक्षा ) यमराज मेरा यार

( पुस्तक समीक्षा ) यमराज मेरा यार

गोण्डा के वरिष्ठ कवि, देहदानी, अनेक मंचों के संरक्षक,कई पुस्तकों के संपादक एवं सह संपादक, विचारक, समाज के चिंतक एवं पूर्व में पत्रकार रह चुके, पक्षाघात रोग से ग्रस्त होने पर भी अनेकों पटलों पर सक्रिय सहभागिता करने वाले , विद्या वाचस्पति सहित अनेकों सम्मानों से सम्मानित पुस्तकों के समीक्षक,जो मुझे दीदी शब्द से सम्बोधित करते हैं,मेरे अनुज सम, नहीं -नहीं, प्रिय अनुज श्री सुधीर श्रीवास्तव जी की अपनी एकल काव्य-कृति “यमराज मेरा यार” मुझे प्राप्त हुआ। यह काव्य संग्रह मुख्यत: हास्य व्यंग कविताओं का संग्रह है। यह संग्रह लीक से हटकर एक अनोखा ही काव्य संग्रह है। इन्होंने विषय भी ऐसा चुना है जिसे जल्दी कोई चुनता नहीं है। विषय के अनुरूप ही नाम भी अनोखा”यमराज मेरा यार”। क्या गजब का काव्य संग्रह है ये। इसमें कवि ने यमराज से दोस्ती प्रदर्शित की है, और उनके ही माध्यम से समाज में व्याप्त, राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया है। अपने हास्य-विनोदपूर्ण शैली से उन्होंने पुस्तक को अति रोचक बना दिया है।इस पुस्तक में 48 कविताएं हैं। सर्वप्रथम गणेश वन्दना, फिर चित्रगुप्त जी महाराज वन्दना, तत्पश्चात गुरु वन्दना, फिर सरस्वती वन्दना के बाद “यमराज का आफर “कविता से शुरूआत किया है। मैं उनके परिश्रम और लगनशीलता को सलाम करती हूं और ये शुभकामना देती हूँ कि उनकी ये पुस्तक लोकप्रिय हो और श्री सुधीर श्रीवास्तव जी की यश वृद्धि करे।
आपके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामनाओं के साथ मेरा आशीर्वाद सदा आप के साथ है, क्योंकि आप नव कवियों के उत्प्रेरक होने के साथ ही एक अच्छे इंसान भी हैं।आपका व्यक्तित्व सभी के लिए प्रेरक व मार्गदर्शक भी है।
शुभं भवतु।
पार्वती देवी ‘गौरा’
देवरिया, उत्तर प्रदेश

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