मानसी गंगा
मानसी गंगा
श्यामल ,सुशोभित,आनंदित , आल्ह्यादित,चंचल तरंगों के साथ, कल कल की ध्वनि लिए बहती जा रही मां यमुने के तट पर धोए जा रहे अपने पापों को लाखों की संख्या में ये मानव निरंतर,प्रतिदिन।न जाने कितने आकार चले गए ,कितने आज आए हैं,कितनों ने आने की राह संजोई है। ये दिव्य स्थान है ही ऐसा जिसे पाने को , यहां की रज में लिपट जाने को न जाने कितने ही महात्माओं ने हजारों वर्ष घोर तपस्या की है ,तब जाकर यहां का वास प्राप्त हुआ।
कतारें चली जा रही हैं ब्रह्म मुहूर्त की मंगला बेला में मंगला आरती के दर्शन हेतु । पंछियों की चहक कहीं मुरली की तान बिहारी जी में बसते हैं मानो भक्तों के प्राण … आहा…… कितना अलौकिक दृश्य है। गिरिधर लाल के जयकारों से शुरू होता है आज का सफ़र…. श्री राधावल्लभ लाल की जय….भगवान शिव के निज ठाकुर जी हैं श्री राधावल्लभ लाल जब से ये बात पता चली मन आनंदित हो उठा इस रूप माधुरी का दर्शन कर जीवन धन्य हो गया।कल्पना करिए कि जो आज हमारे समक्ष हैं कभी भोले बाबा अपने कर कमलों से इनकी सेवा करते थे। अहोभाग्य हमारे कि राधावल्लभ जू इस धरा में पधारे।
दर्शन कर आगे बढ़े ही थे कि बृजवासियों को निश्छल प्रेम लुटाते देखा जो बिना स्वार्थ के श्री राधा नाम लेते हुए आने जाने वाले लोगों की प्रसादी सेवा कर भूखों को भोजन कराने का कार्य कर रहे थे। ये कार्य आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए किया जा रहा था, न कुछ पाने की चाह थी न खो जाने का डर ,तभी तो बृजवासी कहे जाते हैं।वास्तविकता तो ये है कि ये बृजवासी नहीं अपितु इनके अंदर बृज बसता है,मेरे गिरिधर लाल बसते हैं।
हर गली में फूलों की सुगंधी फैली हुई है,हर तरफ़ से मंदिरों की घंटियों का आवाज़ जिसमे राधा राधा राधा नाम शीतल वायु में बहा चला जा रहा है।कितना आनंद है इस छटा में मानो जीवन का सार ही वृंदावन है। कदम बढ़ते जा रहे हैं वृंदावन की हर गली कृष्ण की बाल लीलाओं से आज भी सुशोभित हो रही है ,जिसका आनंद लेते हुए मैं बस चली जा रही हूं ।
चलते चलते दोपहर और धीरे धीरे शाम हो गई,
मेरी ज़िन्दगी मानो मेरी राधा रानी के नाम हो गई ।।
यमुना के तट से शुरू हुआ सफ़र यमुना तट पर ही आ ठहरा ।गोधूली बेला ,आसमान में लालिमा छाई है कुछ धुंधला सा है न जाने क्यूं चारो ओर दिव्य अलौकिकता छाई है गायों का एक झुंड मेरे समीप से गुज़र ही रहा था कि मेरी नज़र झुंड के बीच खड़े एक बालक पर पड़ी कोमल,सुंदर श्यामल शरीर, निश्छल मुस्कान हाथों में छोटी सी बांसुरी लिए पीत वस्त्र में लिपटा अंग मानो श्याम सलोने स्वयं गायों को चराकर लौट रहे हों। बड़ी बड़ी कजरारी आंखें साथ में हाथ पकड़ कर चल रही गौर ,सुंदर ,मनमोहनी अपनी ओढ़नी को सम्हालते हुए मानो ओढ़नी नहीं स्वयं घनश्याम को ही ओढ़ रखा है।इस युगल छवि को एकटक निहारते नेत्रों से सहसा अश्रु धार बह रहे हैं न कोई परिचय न कोई वार्तालाप उनके नेत्रों में अथाह प्रेम है जो वे दोनों मुझपर दृष्टि डाल कर लुटाए जा रहे हैं काश ये पल यहीं ठहर जाए इस रूप लावण्य को मैं यूं ही निहारती रहूं कितना मनमोहक है। इस युगल छवि को देखने के बाद कुछ भी देखना शेष नहीं और न ही देखने की अभिलाषा ।आज श्री राधा रानी की कृपा से उनके इस युगल रूप के दर्शन कर जीवन धन्य हो गया इनकी इस मुस्कान पर मैं अपना जीवन ही वार दूं। दोनों मेरी ओर ही बढ़ रहे हैं धीरे धीरे धीरे उनके बढ़ते हर कदम के साथ मेरी धड़कने भी बढ़ रही हैं… क्या ये सच में मेरी प्रिया जू हैं ? क्या ये श्याम सलोने मेरे कृष्ण ही हैं कहीं ये मेरा वहम तो नहीं इस विचार के साथ मैं एकटक उनको निहारती रही ये सोचकर कि ये छलिया कहीं अदृश्य हो कर मुझसे छल न कर बैठे।मेरे बिल्कुल समीप आ चुके हैं दोनों मन तो कर रहा है कि इसी क्षण इनके चरणों से लिपट जाऊं पर संकोच में ही रह गई । बस एक दूसरे के नेत्रों को निहारते जा रहे हैं हम तीनों मानों मुख से कहने की ज़रूरत ही न हो किसी को ।बिन कहे ही उन्होंने मुझे सुन लिया और मैंने उनकी आंखों में खुद को देखा ,इतने समीप हैं आज वो मेरे युगल सरकार। मेरे मन की व्यथा और मेरी परिस्थिति अब ऐसी थी कि मैं अब शून्य हो चुकी थी और इस जड़ चेतन को मेरे प्रभु ने अपने कोमल कर कमलों से छूकर मुझे अपने आप में विलीन कर स्वयं राधे संग विलीन हो गए।
मेरी मानसी गंगा का सफ़र शुरू तो यमुना घाट से हुआ था किंतु खत्म कृष्ण घाट अर्थात कृष्णमय हुआ।
कृष्णमय होकर मुझे अथाह सुख और सुकून प्राप्त हुआ।
बड़ा ही सुखद और संतोष भरा था और हो भी क्यूं न जिस रूप के दर्शन पाने हेतु जप तप साधन करने होते हैं वो सब किए बिना मुझे मानसी गंगा में डुबकी लगाकर स्वतः ही प्राप्त जो हुआ है।
श्री राधावल्लभ ,श्री बांके बिहारी,श्री राधारमण लाल की जय श्री राधे श्री राधे श्री राधे
आज मानसिक यात्रा का अद्भुत सुख प्राप्त हुआ जिसे शब्दों में जोड़ने का प्रयास किया है,
मैने चार दीवार में बंद रहकर भी बृजवास किया है।।
सीमा