रथ सूरज का ठहरा (सार छंदाधारित गीत)
रथ सूरज का ठहरा
(सार छंदाधारित गीत)
पछुआ ने अब रंग जमाया,
रथ सूरज का ठहरा।
मौसम ने है ली अँगड़ाई,
शीतलता अब पसरा॥
सूरज दुबक गया कोने में,
सुखद शबनमी बूँदें।
अलसायी-सी प्रातकाल हम,
जागें आँखे मूँदें॥
भागदौड़ है नित जीवन में,
दिवस दिखाता नखरा।
पछुआ ने अब रंग जमाया,
रथ सूरज का ठहरा॥
पीत-पर्ण पादप अब त्यागे,
जीवन हुआ कँटीला।
बच्चे-बूढ़े धूप सेंकते,
दिवस हुआ रंगीला॥
अब मुँडेर पर कागा बोले,
प्रात: शाम ककहरा।
पछुआ ने अब रंग जमाया,
रथ सूरज का ठहरा॥
रात पूस की बहुत सताती,
बतलाता है हल्कू।
कुहरा अब नित झलक दिखाता,
कहता है नित झल्कू॥
ठंडक ठिठुरन तेज हो गयी,
अब तुषार है उतरा।
पछुआ ने अब रंग जमाया,
रथ सूरज का ठहरा॥
नीरवता है विहग-वृन्द में,
मधुकर है मधुवन में।
तितली रानी बाट जोहती,
बासंती यौवन में॥
हरियाली से हरित हुआ है,
अब धरती का अँचरा।
पछुआ ने अब रंग जमाया,
रथ सूरज का ठहरा॥
गरम मसालों का सेवन हो,
गर्म पेय अरु पानी।
ऊनी वस्त्र सदा हो तन पर,
सब रखें सावधानी॥
रंग बिरंगा कपड़ा पहने,
मनुज दिखे चितकबरा।
पछुआ ने अब रंग जमाया,
रथ सूरज का ठहरा॥
डॉ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश