मां पन्ना-चन्दन का संवाद (गीत)
मां पन्ना-चन्दन का संवाद (गीत)
धन्य पन्ना, धन्य सूरज,
धन्य चन्दन, धन्य मेवाड़
का आज़ मैं जयघोष करवा हूं।
बलिदानी चन्दन की माटी,
का मैं इतिहास बता रहा हूं।
बेटा चन्दन की करूण पुकार,
मैं आपको सुना रहा हूं।
मैं बोल तो नहीं सकता, मां
बस संकेतों में समझा रहा हूं।
मैं कुछ नहीं कर रहा, मां
फर्ज पुत्र का निभा रहा हूं।
मैं रो नही रहा हूं, मां
बस, अन्तिम दुध मांग रहा हूं।
उदय को लोरी सुनाना, मां
मैं अनुरोध तुझसे कर रहा हूं।
सैयां पर उदय को सुलाना, मां
वचन तुझसे से मांग रहा हूं।
वस्त्र उसके मुझे पहनाना, मां
भिक्षा तुझसे से मांग रहा हूं।
उसकी सैयां पर सुलाना, मां
हाथ तेरे जोड़ रहा हूं।
गहरी नींद में सुलाना, मां
प्रतिक्षा काल की कर रहा हूं।
बनवीर से भयभीत नंही होना, मां
मैं विनती तुझसे से कर रहा हूं।
संकेत दुश्मन को करना, मां
मैं चन्दन नहीं डर रहा हूं।
बनवीर से कहना, मां
मैं तलवार का इन्तजार कर रहा हूं।
कह रहा हूं, मैं तलवार से, मां
भयभीत मैं नहीं हो रहा हूं।
ऋण आज मेवाड़ी धरा का, मां
मैं रक्त से चुका रहा हूं।
कट गया, शीश मेरा, मां
उदय का जीवन मांग रहा हूं।
अंधेरी रात से, मां
मैं सिसोदिया का वंशज मांग रहा हूं।
कुम्भलगढ से, मां
मैं उदय की शरण मांग रहा हूं।
सिसोदिया के दीपक से, मां
फिर मेवाड़ मांग रहा हूं।
उदयसिंह की तलवार से, मां
बनवीर का शीश मांग रहा हूं।
मां पन्ना के चरणों में, मां
धड़ बनवीर का मांग रहा हूं।
आज इतिहास के पन्नों में, मां पन्ना चन्दन लिखवा रहा हूं।
आज मैं मेवाड़ से, मां
पन्ना का त्याग बता रहा हूं।
जोत सिसोदिया वंश की, मां
मैं अविरल जला रहा हूं।
मिल रहा हूं, पिताश्री से, मां
मैं अमर गाथा गा रहा हूं।
वहां से, मैं मां
धन्य मेवाड़ का जयकारा लगा रहा हूं।
यमराज को, मां
तेरा यश गान सुना रहा हूं।
बस, रोना नहीं, मां
मैं यमपुरी को जा रहा हूं।
विष्णु शंकर मीणा
गांव हरीनगर तह पीपल्दा कोटा राजस्थान