राष्ट्रीय एकता और हिंदी
राष्ट्रीय एकता और हिंदी
“राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना है
देश को सजाए रखना है”
राष्ट्रीय एकता का सूत्र है हिंदी। भारत देश कई विधाओं का मिश्रण है। उसमें कई भाषाओं का समावेश है। सभी भाषाओं में हिंदी को देश की मातृभाषा का दर्जा दिया गया।
“धर्म जाति के अंतर को तोड़ो
हाथ मिलाओ भारत को जोड़ो”
हिंदी हजार वर्षों से हमारे सांस्कृतिक विरासत एवं साहित्य की भाषा के साथ-साथ जनता की संपर्क भाषा के रूप में प्रचलित रही है।
“हिंद देश के निवासी सभी जन एक हैं
रंग ,रूप वेश -भाषा चाहे अनेक हैं”
राष्ट्रीय एकता की प्राण हिंदी है। वास्तव में हिंदी की यह प्रकृति ही देश की एकता का परिचायक है। भारत देश दुनिया में सबसे ज्यादा विविध संस्कृतियों वाला देश है। धर्म, परंपराओं और भाषा में इसकी विविधताओं के बावजूद यहां के लोग एकता में विश्वास रखते हैं।
“भारत की अनेकता पर हमें गर्व होता है
विविधता में एकता का हमें गर्व होता है
जहां सभी धर्मों के लोग खुशी- खुशी रह सकें
हाॅं ,भारत जैसा ही तो स्वर्ग होता है”
महर्षि दयानंद ने अपने वैदिक धर्म के प्रचार का माध्यम हिंदी को बनाया। और उनका मंतव्य था कि सब उन्नतियों का केंद्र स्थान एक है। जहां भाषा,भाव और भावना में एकता आ जाए, वहां सागर में नदियों की भांति-सा सुख एक-एक करके प्रवेश करने लगते हैं। हिंदी के महान साहित्यकार तथा खड़ी बोली हिंदी के जन्मदाता माने जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा था,”निज भाषा उन्नति अहो, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हाय को सूल”।
इस प्रकार हम हिंदी को राष्ट्रीयता का पर्याय मानते हुए कह सकते हैं कि हिंदी भारत की भारती है, हिंदी हिंदुस्तान की हिंदी है। यह हमारे राष्ट्रीय एकीकरण का मूल सूत्र है। अतः हमें अपनी संविधान सम्मत सभी भाषाओं का पूर्ण सम्मान करते हुए राष्ट्रीय भावना और एकता को परिपुष्ट करने के लिए राजभाषा हिंदी को उसके पद पर सही अर्थों में निष्ठा पूर्वक स्थापित करने का संकल्प लेना चाहिए।
आज एक बड़ा प्रश्न यह है कि धर्म, जाति ,भाषा, क्षेत्र आदि के नाम पर समाज को बंटने से कैसे रोका जाए..? इसके लिए सबसे पहले तो हमें एक -दूसरे की संस्कृति का सम्मान करना सीखना होगा। परिवार में अलग राय रखने वालों को घर से निकाल दिया जाता है। यह सही है कि लोग अपनी क्षेत्रीय संस्कृति को बढ़ावा दें। इससे सांस्कृतिक समृद्धि बढ़ेगी। लेकिन यह राष्ट्रीयता की कीमत पर नहीं होनी चाहिए।
“अकेले में अक्सर हम अपनी परछाइयां से डर जाते हैं
साथ मिले अगर किसी का तो हम दुनिया जीत जाते हैं”
डॉ मीना कुमारी परिहार