‘हीरामन का बैल’
‘हीरामन का बैल’
आज ‘हीरामन’ प्रगति की उस छोर पर खड़ा है जहांँ किसी चीज़ की कोई कमी ही नहीं है उसके जीवन में। खुशहाल परिवार के साथ उसकी ज़िंदगी हँसी-खुशी से व्यतीत हो रही है।अब गरीबी कहाँ रही उसकी दुनियांँ में। बस वह यह सब सोच ही रहा था कि, तभी ‘हीरामन’ को टेबल पर पड़ी कुछ हिंदी की किताबें अपनी ओर आकर्षित कर रही थीं कि! तभी बाहर से उसे कोई आवाज लगाते हुए कहा…’हीरामनबाबू’ ओ ‘हीरामनबाबू’! घर पे हैं क्या? तभी ‘हीरामन’ खिड़की से झांँकते हुए बोला…आ रहा हूँ भाई। तभी ‘हीरामन’ के घर के आँगन में उसका पाँच साल का बेटा जो कि आँगन की धूल-मिट्टी से लोट-पोट होकर रोए जा रहा था। ‘हीरामन’ अपनी पत्नी ‘शांता’ को आवाज़ लगाते हुए कहा… ज़रा सुनती हो! बाहर कुछ लोग खड़े हैं क्या सोचेंगे, इसे चुप कराओ। उसकी पत्नी ‘शांता’ ने साड़ी का कोंचा खोंसा और झट से अपने बच्चे को अपनी गोद में लेते हुए कहा!… आपसे एक बच्चा भी संभाला नहीं जा रहा है। ‘हीरामन’ ने बाहर आकर देखा तो कुछ लोगों की भीड़ लगी हुई थी उसके दरवाज़े पर, जो कि चंदा माँगने के उद्देश्य से आए थे। ‘हीरामन’ आते ही कहा… कहिए! उस भीड़ में से एक श्रेष्ठ सज्जन ने कहा…हम लोग विष्णु यज्ञ करवा रहे हैं ‘हिंगना हाट’ की फील्ड पर उसी का चंदा इकट्ठा कर रहे हैं। ‘हीरामन’ ने बड़े उत्साहित होकर बोला… अरे वाह! ये तो बहुत ही खुशी की बात है भगवान विष्णु जी का यज्ञ होने जा रहा है।
उस श्रेष्ठ सज्जन ने कहा…आपसे मैं यही विनती करता हूँ की, आप महाविष्णु यज्ञ में इस माह का राशन, जो कि ‘जन वितरण प्रणाली’ के अंतर्गत सभी लोगों को मिलता है उसे दान स्वरूप में दे दें। ‘हीरामन’ ने उस ‘श्रेष्ठ सज्जन’ की बातों को सुनकर अपनी सहमति प्रदान की। तभी ‘श्रेष्ठ सज्जन’ ने धन्यवाद कहकर वहांँ से प्रस्थान किया। जब ‘हीरामन’ ने अपने आँगन में आकर देखा तो शांता अपने बच्चे को दूध पिला रही थी। रसोईघर के चुल्हे पर भात की हांडी चढ़ी हुई थी, जलावन बिखरा पड़ा था, चुल्हे की आँच भी ठंडी पड़ गई थी। सब कुछ अजीब सा लग रहा था, उसने चारों ओर देखकर मन ही मन सोचा कि इस समय शांता से बात करना उचित नहीं है। हीरामन धीरे से कमरे के अंदर आकर टेबल पर पड़ी कुछ हिंदी की किताबों को उलट-पुलट करने लगा, तभी शांता अपने बच्चे को दूध पीलाकर रसोई-घर को साफ-सुथरा करने में जुट गई। उसी क्षण अपने गाँव की पड़ोसन काकी ‘कमली देवी’ जो कि कानों से बहरी होते हुए भी अपनी आंँख से बातों को भांँप लिया करती थी, वह ‘शांता’ के पास आकर बैठ गई। उसने ‘शांता’ से कहा… कनियाँ! के सब ऐलौ रहौं, तोर दुवारी पर, देखलौ रिहौं भीड़ रहौं? ‘शांता’ को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था, ‘शांता’ अपने चुल्हें की ठंडी आग को फूँक मारते हुए बोली… चाची मुझे नहीं पता, उस समय मैं अपने बच्चे को दूध पिला रही थी। ‘हीरामन’ ने उस पड़ोसन काकी ‘कमली देवी’ को देखकर मन ही मन कहा कि…आ गई कानाफूसी करने, देहाती भुच कहींकी। उसने कबड खोलकर अपने पुराने रेडियो पर लगी धूल-मिट्टी को साफ़ करके ‘विविद-भारती’ टूयून किया
और फिर वह धीमी आवाज़ में मधुर संगीत का आंनद लेते हुए गहरी नींद में कब सो गया, उसे पता ही नहीं चला। इधर ‘शांता’ घर के सारे काम काज करके उसे जगाने आ गई। शांता ने रेडियो को बंद करते हुए ‘हीरामन’ से पूछा…सो गए क्या?नहा धो लीजिए तब-तक में खाना लगा देती हूंँ। तभी हीरामन ने अपनी घड़ी की ओर देखा दोपहर के ढाई बज रहे थे वह हड़बड़ाते हुए उठा और नहा धोकर खाना खाने बैठ गया। उसने थाली में भात और पटवा साग एवं आधा कटा प्याज देखा तो उसकी भूख और भी बढ़ गई। वह जल्दी-जल्दी खाना खाकर अपने दरवाजे पर आकर बैठ गया। तभी दरवाजे के बथान पर दो जोड़े बैल बंधे हुए थे उसके नाद में कोई चारा भी नहीं था उसने अपनी पत्नी ‘शांता’ को आवाज़ दी…ज़रा सुनती हो, बैल के नाद में थोडा चारा डाल दो।
यह सुनते ही बैल डकारने लगे। उसकी पत्नी की तरफ से कोई उत्तर न मिलने पर हीरामन ने खुद चारा डालते हुए बैलों के गले में हाथ फेरकर बैलों से कहा…भूख लगी थी न! लो अब नहीं लगेगी, लो ये चारा खाकर अपनी भूख मिटा लो। ‘हीरामन’ की बात सुनकर बैलों ने अपने दोनों कान खड़ेकर दिए और लगे उसकी देह चाटने। ‘हीरामन’ ने बैलों को डांँट लगाते हुए कहा…हट! जब तुम्हें चारा मिल ही गया है तो देह क्यों चाटते हो? देखो जल्दी-जल्दी चारा समाप्त कर दो उसके बाद ‘शांता’ तुम्हारे लिए मांड लेकर आएगी तब तुम उस मांड को जी भरके पी लेना।बैलों ने ‘हीरामन’ को सुंघते हुए अपने नाद में मुँह डाल दिए। तभी ‘हीरामन’ उस बीते हुए पल को दुहराने लगा …वो भी क्या दिन थे। जब मैं ‘मौरंग-नेपाल’ से इसी बैल के सहारे चोर बाज़ारी से गाड़ी भरके बांँस को लाकर बेचा करता था।
कंट्रोल के जमाने में, शारदा-कानून भी हुआ करता था।एक बार मेरी बैलगाड़ी भी पकड़ी गई थी। मैं अपनी जान जोख़िम में डालकर बैलों को लेकर भागा भी था। उसके बाद फिर नई टप्पर वाली गाड़ी मात्र आठ आने में खरीदी थी। नोटंकी की ‘हीराबाई’ से मुझे प्यार भी हो गया था गडबनैली के मेले में। तभी की ज़िंदगी कितनी प्यारी लगती थी। रिश्तों का मिठास अपनेपन में साफ़ साफ़ झलकता था, पर आज ये वही दुनियाँ है, यहाँ कौन है अपना! कौन है पराया! कुछ पता ही नहीं चलता है। रिश्तों से अब तो मिठास गायब हो गई है सिर्फ़ शब्दरूपी रिश्ते-नाते बचे हुए हैं, अपने लोगों की पहचान तो है ही नहीं अपने लोगों को। तभी ‘शांता’ बाल्टी भर नमक वाला मांड लेकर आ गई बैलों को पिलाने…बैल अपना चारा छोडकर ‘शांता’ की तरह जोर लगा रहे थे। जैसे ही शांता ने बाल्टी को बैल के तरफ़ आगे बढ़ाया, बैल ने अपना मुँह बाल्टी में डाल कर बड़े ही आनंद के साथ उस नमक वाले मांड को पीकर, बाल्टी को चाटने लगा। तभी ‘हीरामन’ ने चुपके से आकर बैलों के कान में कुछ कहा…पी कर मज़ा आया ना! वैसे शांता दिल की बहुत ही अच्छी है। हाँ! कभी-कभी मुझसे नाराज़ भी हो जाती है। बैलों ने उसकी बातों को सुनकर उसके सामने गर्दन तान दी, ‘हीरामन’ ने उसके गले में हाथ फेरते हुए कहा… चिंता मत करो! गोवर्धन पूजा के ही दिन तुम्हारे लिए नए-नए गले का हार और घंटी भी लाकर दूंँगा तब मचकते रहना। ‘हीरामन’ की बात-चीत बैलों से चल ही रही थी कि ‘हीरामन’ की जेब में फोन की घंँटी बजने लगी। ‘हीरामन’ ने अपनी जेब से फ़ोन निकालते हुए…
कहा…किसका फोन आ गया भाई, फोन रिसीव करते हुए… हैलो कौन? उधर से धीमी आवाज आई, आप ‘हीराबाबू’ जी हैं क्या? हाँ मैं ‘हीरामन’ बोल रहा हूँ। अरे हीरामन भाई, मैं ‘मोहन बाबू’ पकटोला से। ओह हो, मोहन बाबू कैसे हैं आप? फोन पर मोहनबाबू ने कहा…मैं तो बहुत ही बढ़िया हूँ, आपसे मिले बहुत दिन हो गए थे,कल रधिया के माई से आपका नंबर लिया था सोचा आपसे थोड़ी सी बात कर ही लूँ। सब कुशल मंगल है कि, तभी ‘हीरामन ने कहा…हाँ ‘मोहनबाबू’ सब कुशल मंगल ही है, सोच रहा हूँ अब बैल नहीं पालूंँगा बड़ा ही झंझट सा लगता है चारा लाना! अब तो चारा भी नहीं मिल पाता है, अब खुला मैदान कहाँ रहा जो कि बेजुबान पशुओं को चारे के लिए वहांँ लेजाया जाए, नहीं हो पाता। ‘मोहनबाबू’ ने कहा…ठीक है ‘हीरामनबाबू’ देख लीजिए, आपको जैसे अच्छा लगे। वैसे मैंने आपके मोबाईल नंबर को अपने फोन में सेव कर लिया है। अब तो अक्सर ही मैं आपसे बातें किया करूँगा, यह कहकर उन्होंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। तभी ‘शांता’ ने ‘हीरामन’ से कहा… क्यों जी! बैल बेचने की बातें किससे हो रही थी फोन पर। क्या सचमुच में बैल बेच ही देंगे? ‘हीरामन’ ने उदास लफ़्ज़ों में कहा…हांँ ‘शांता’! अब बैल पालने से क्या होगा, लोग तो खेती ट्रेक्टर से ही करवा लिया करते हैं और हल से जोतकर खेती करना अब हमारे बस की बात नहीं है, इससे जोताई करना बड़ा ही मुश्किल सा लगता है! सोचता हूंँ, इसे बेचकर एक गाय खरीद लूंँ। घर में गौ माता भी आ जाएगी और दूध की समस्या भी खत्म हो जाएगी। दोनों की बातें सुनकर बैलों ने डकार मारा और नाद को उलट-पुलट कर दिया।
तभी ‘हीरामन’ ने बैलों की भावनाओं को समझते हुए उनके समीप जाकर, बैलों के पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा… मुझे माफ़ करना! तुम्हें ज़रूरतमंदों के घर ही भेजूंँगा वहांँ तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी, यह कहकर हीरामन! अपने आंँगन में चले गए। कुछ दिन बीत जाने के बाद ‘हीरामन’ दोनों बैलों को खिला-पिलाकर ‘सिमराहा मवेशी हाट’ में लेजाकर दोनों बैलों को बेच आता है। बैलों को बेच देने से ‘हीरामन’ की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। घर में न तो उसे खाना अच्छा लगता था और न ही किसी से बात करना अच्छा लगता था, वह एकदम चिड़चिड़ा हो गया था। जब भी ‘हीरामन’ अपने दरवाज़े पर बैठता था, तो उसकी आँखें सूने बथान को देखकर भर आती थीं। कुछ दिनों तक ऐसे ही सिलसिला चलता रहा। जिसने उसके बैल खरीदे थे वह आदमी ‘हीरामन’ के घर आकर उससे बोला… भाई मुझे मेरे पैसे लोटा दीजिए! ये दोनों बैल बहुत ही शरारती हैं किसी को कुछ भी नहीं समझते! जब मैं नाद में चारा डाल रहा था तो मुझे अपने दोनों सींघों से वार कर घायल कर दिया। अब आप ही बताएँ ऐसे खतरनाक बैलों को लेकर मैं क्या करूँगा? कल मेरे घर आकर दोनों बैलों को ले आईए। उस खरीदार की बातें सुनकर ‘हीरामन’ के चेहरों पर रौनक आ गई वह खुशी से कहा…कल क्यों? आज़ जी ही ले आता हूँ। तभी ‘हीरामन’ ने अपनी पत्नी ‘शांता’ को आवाज़ लगाते हुए कहा… ज़रा सुनती हो! मैं जा रहा हूंँ अपने बैलों को लाने तब तक तुम सानी-चारा का बंदोबस्त करके रखना।
उसकी बातों को सुनकर ‘शांता’ अचंभित हो गई और बोली… बैलों को लाने मतलब! तभी ‘हीरामन’ ने अपनी कमीज़ पहनते हुए कहा… अभी मतलब-शतलब छोड़ो! ये सोचो, हमारे सूने बथान की रौनक बढ़ाने के लिए फिर से अपने घर हमारे दोनों बैल आ रहे हैं। यह कहकर ‘हीरामन’ उस आदमी के साथ उसके घर चला गया।
‘हीरामन’ को देखते ही बैल डकारने लगे ऐसा लग रहा था कि मानो मैं नहीं हूँ! मेरी जगह पर हरी-भरी घास पड़ी हो। तभी ‘हीरामन’ ने दोनों बैलों की भावनाओं को भाँप लिया था और बैलों के करीब आते ही कहा… मैंने सुना है कि आजकल तुम बहुत ही शरारती हो गए हो, देखो अब शरारत करना छोड़ दो! मैं तुम्हें ले जाने आया हूँ चलोगे न मेरे संग अपने घर। ‘हीरामन’ की बातें सुनते ही दोनों बैलों ने अपने कान सीधे कर लिए। तभी ‘हीरामन’ ने अपनी कमीज़ की जेब से पैसे निकाल कर खरीदार को देते हुए कहा… लीजिए ये आपके पूरे पैसे। जब ‘हीरामन’ दोनों बैलों को लेकर अपने घर आया तो, ‘शांता’ की खुशी आसमान छूने लगी, ‘शांता’ झट बाल्टी भर पानी लेकर बैलों के चारों पैरों को धोने लगी उसके बाद तीलक लगा कर बैलों के आगे हरी-हरी घास डाल दी और दोनों बैल खुशी से हरी-हरी घास खाने लगे। ‘हीरामन’ के बथान पर दोनों बैलों को देखकर गाँव के लोग भी कहने लगे… ‘हीरामन’ भाई! अब लगता है कि इस बार की खेती, पहले की अपेक्षा में बहुत अच्छी जुताई होने वाली है। लोगों की बातें सुनकर ‘हीरामन’ और ‘शांता’ मुस्कुराने लगे, और गर्दन झुकाकर मुस्कुराते हुए कहा…इस्स!
संदीप कुमार विश्वास
रेणु गाँव, औराही-हिंगना
फारबिसगंज, अररिया-बिहार