सच्ची दोस्ती (कहानी)
सच्ची दोस्ती (कहानी)
एक गांव में दो सहेलियाँ थी।वाणी,लक्ष्मी, एक ही पाठशाला में पढ़ते थे।दोनो बहुत होशियार और चालाक थे। पढ़ाई में आगे थे।इन्हीं के कक्षा में थी लूसी नामक लड़की।इसे इन दोनों की दोस्ती से जलन था।
एक दिन लूसी ने वाणी के घर जाकर कहा तुम्हारी पुस्तक लाने को लक्ष्मी ने कहा दे दो मै उसी ओर जा रही हूँ दे दूंगी।वाणी सही समझकर पुस्तक दे दी।
लूसी ने यही अच्छा मौका समझकर उस पुस्तक को फाड़कर कही फेक दी।चुपचाप रह गई।अगले दिल जब पाठशाला आई तो पुस्तक लक्ष्मी से पूछना चाहा लेकिन उस दिन लक्ष्मी की तबियत ठीक न होने के कारण पाठशाला नहीं आयी थी।तीन दिन बाद लक्ष्मी पाठशाला आयी। इन तीन दिनों में लूसी ने वाणी के दिल में लक्ष्मी के प्रति गुना पैदा कर दिया था।लक्ष्मी के आते ही वाणी ने पुस्तक माँगी। लक्ष्मी को पुस्तक के बारे में कुछ नहीं मालूम था।मेरे पास नहीं है कह दी।इन दिनों के बीज लूसी आकर और भड़काने लगी।दोनो में दूरी बढ़ गई।
शाम 6 बजे वाणी सच्चाई जानने के लिए लक्ष्मी के घर गई इस विषय के बारे में बताई तब दोनों को समझने आया कि लूसी ने अपनी दोस्ती को तोड़ने की कोशिश की है।अगले दिन जब पाठशाला शुरू हुआ तो दोनों मिलकर आए।यह देखकर लूसी के पसीने छूटने लगे उसकी गलती बार बार याद आने लगी।
भोजन विराम में लक्ष्मी और वीणा लूसी के पास जाकर बैठ कर खाने लगे।उन दोनों को देखकर अपने आप रोने लगी।जो कुछ उसने किया सब कुछ बता दी। दोनों सहेलियां उसे देखकर हँसने लगी और कहा कि * जाव हम तुम्हे क्षमा कर दिए * और एक बार ऐसी गलती न करना। लक्ष्मी ने वाणी के लिए नया किताब लाकर दी वाणी बहुत खुश हुई।
लूसी के पिता जी का तबादला हुआ था इस लिए वह दूसरी पाठशाला में चली गई।
नीति:सच्ची दोस्ती को कोई नहीं बिगाड़ सकता।
टी आदि लक्ष्मी आंध्रप्रदेश