संत श्री कबीरदास जी
संत श्री कबीरदास जी
भक्तमाल ग्रन्थ से ली गई पंक्तियां –
भक्ति बिमुख जो धर्म सोई अधरम करि गायो।
जोग जग्य व्रत दान भजन बिनु तुच्छ दिखायो।।
हिंदू तुरक प्रमान रमैनी सबदी साखी।
पच्छपात नहीं बचन सबहिं के हित की भाषी।।
आरूढ़ दशा है जगत पर सुख देखी नाहिंन भनी।
कबीर कानि राखी नहीं बरनाश्रम षटदरसनी।।
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भक्तिहीन षड्दर्शन व वर्णाश्रम को न मानते थे
भक्ति से विरूद्ध धर्म को सदा अधर्म मानते थे
बिना भजन के योग, व्रत,यज्ञ,दान को व्यर्थ बताया
बीजक,रमैनी,सबदी, साखियों से भक्ति जगाया
हिंदू, मुसलमान के लिए इनके वाक्य प्रमाण हैं
ज्ञान, भक्ति की आनंदमय अवस्था में विद्यमान हैं
प्रभाव में आकर मुँहदेखी बात नहीं करते थे
जगत के सब प्रपंचों से सर्वथा दूर रहते थे
भक्तों में दास नाम आदर सहित लिया जाता है
जन्म विषय में इतिहास तमाम किस्से बतलाता है
कहें,रामानंद एक ब्राह्मणी पर प्रसन्न हुए
उन्हीं के आशीष से विधवा के घर उत्पन्न हुए
लोक लाज से डरकर शिशु लहरतारा में बहाया
नीरू नामक एक जुलाहा शिशु घर पर ले आया
वही अब कबीरदास का पालन पोषण करता था
कबीरदास की सेवा कर मन में मगन रहता था
कुछ के अनुसार जन्म कमल पुष्प माना जाता है
यह स्थल लहरतारा के नाम से जाना जाता है
एक ग्रन्थ के अनुसार दास प्रतीचि की हैं सन्तान
भक्तराज प्रहलाद रूप जन्में कबीरदास महान
कमल के पत्ते पर रखकर लहरतारा में बहाया
नीमा नामक जुलाहे ने दास को बहता पाया
कई कहते हैं कबीर जन्म से ही थे मुसलमान
बालक थे तभी हिंदू धर्म की बातें ली थी जान
दास पंचगंगाघर सीढ़ियों पर पड़े रहते थे
स्नान हेतु श्रीनंद जी वहीं से उतरा करते थे
रामानंद जी का पैर कबीरदास पर ज्यों पड़ा
रामानंद जी का वदन चट राम- राम बोल उठा
कबीर ने इसे श्रीगुरू मुख दीक्षा मंत्र जान लिया
संत श्रीरामानंद जी को अपना गुरु मान लिया
मुस्लिम कहें दास ने शेख तकी से दीक्षा ली है
पर दास ने कभी नहीं तकी को गुरु प्रतिष्ठा दी है
श्री रामानन्द जी को दास अपना गुरु कहते थे
पीर पीताम्बर नाम आदर से लिया करते थे
हिंदू भक्तों फकीरों का कीर्तन किया करते थे
उससे जो तत्व प्राप्त होता हृदय में रखते थे
पत्नी नाम था लोई इनकी थीं दो सुन्दर सन्तान
सुत नाम कमाल , पुत्री कमाली जो थे इनकी जान
परिवार के पालन हेतु कठोर श्रम करना पड़ता था
इनके घर साधु-संतों का जमघट लगा रहता था
कभी- कभी फांकें मस्ती का मजा मिलता रहता था
प्रभु की भक्ति कीर्तन में जीवन कटता रहता था
कबीर वाणी का संग्रह “बीजक” नाम से प्रसिद्ध है
तीन भाग रमैनी,सबद ,साखी जो स्वयंसिद्ध है
भाषा खिचड़ी जो कई बोलियों का पंचमेल है
बिना पढ़ें लिखे बने कवि सब ईश्वर का खेल है
दास के जीवन से जुड़े प्रचलित हैं कई चमत्कार
जिनका उद्देश्य है भगवत भक्ति का प्रचार-प्रसार
एक बार आप कुंभ के अवसर पर गए हुए थे
तत्कालीन यवन शासक तकी संग आए हुए थे
एक दिन वह खड़े हुए थे त्रिवेणी नदी किनारे
स्नान करनें की खातिर कबीरदास वहां पधारे
उसी समय नदी में बहता मृत बालक एक आया
शेख तकी ने तभी मृत शिशु को सुल्तान को दिखाया
कैसा सुन्दर बालक है जल में बहते जाता है
कोई इस मुर्दा बालक के क्यों प्राण न बचाता है
श्रीदास ओर संकेत कर तकी से यह फ़रमाया
यह संत जिन्दा कर सकता है कह उपहास उड़ाया
कबीरदास को लगा यह है मद के नशे में चूर
मेरी भक्ति को परख रहा है यह धूर्त मगरुर
एक फकीर के सम्मुख मेरी हँसी उड़ा रहा है
मेरी भक्ति के आगे खुद को बड़ा बता रहा है
कहा-“ऐ बालक! कहाँ जा रहा है, आ मेरे पास।”
इतना कहते ही बालक तन में चलने लगी साँस
पास आकर श्रीदास चरण में किया उसने प्रणाम
उसके प्राण कौन हर सकता जिसके रक्षक हों राम
देख चमत्कार सुल्तान मुख से बरबस निकला- “कमाल”
कबीर जी ने उस बालक का नाम रख दिया “कमाल”
कबीरदास जी ने कमाल को अपना पुत्र बनाया
मृत बालक ने पिता रूप में दिव्य संत को पाया
इसी तरह की एक कथा कमाली पर सुनाते हैं
कमाली को ग्रन्थ सारे राजकन्या बतलाते हैं
बाल्यावस्था में उसकी मृत्यु हो जाने के कारण
कुल प्रथा के अनुसार नृप ने किया भूमि पारायण
जब नृप पता चला कबीरदास परम सिद्ध संत हैं
जिनके पुकारने मात्र से मृत होते जीवंत हैं
तब नृप ने कबीरदास को आदर सहित बुलवाया
निज मृत तनया को जीवित करने की टेर लगाया
नृप प्रार्थना पर दास जी ने यह कहकर पुकारा
“बेटी! पिता बुला रहे,आ जा जीनें का सहारा।”
बार- बार पुकारने पर जीवित न हो पाई सुता
कहा- “अच्छा बेटी! बुला रहे कबीर तुम्हारे पिता।”
इतना सुन समाधि से जीवित होकर बाहर आई
राजा रानी के मुख पर फिर से खुशहाली छाई
गोद में लेकर पुत्री को जब नृप महल जाने लगे
राजकन्या रुदन कर नीर आंखों से बहाने लगे
कहा! जिस पित के नाम पर जीवित होकर आई हूँ
उन्हीं की पुत्री आज से तुम्हारे लिए पराई हूँ
उन्हीं के साथ अब सिर्फ उनके घर मैं जाऊंगी
आपके संग कदाचित न महल में मैं रह पाऊंगी
सुन बेटी की बात पुत्री कबीरदास को सौंपकर
दास जी को नमन किया दोनों हाथों को जोड़कर
इनसे जुड़ी इसी प्रकार की एक कथा बताते हैं
जब बलख बुखारा बादशाह के पुत्र मर जाते हैं
उसे ज्ञात हुआ भारत में अनेक सिद्ध फकीर हैं
जो मृत को जीवित कर हरते उसकी सभी पीर हैं
संत लाने वजीर को भारत की भूमि पर भेजा
मुस्लिम देश में जाने का किसी में न था कलेजा
भक्तिकाल में अनेक ऐसे सिद्ध संत होते थे
जो मुर्दे में आवाहन से ही प्राण भर सकते थे
अन्त में वजीर जब कबीर जी के पास में आया
प्रार्थना स्वरूप दास के सम्मुख हाथ फैलाया
वजीर के अनुनय- विनय पर दास हो गए तैयार
बलख बुखारा गए जहां हुआ बड़ा आदर सत्कार
शहजादे का जहां पर शव रखा था गए उस स्थान
बादशाह, वजीर के साथ जहां खड़े थे दरबान
शहजादे के शव से कहा उठ सुल्तान के हुक्म से
शव वैसे ही पड़ा रहा जीवित न हुआ इस इल्म से
कबीरदास जी ने फिर कहा उठ खुदा के हुक्म से
जब शव फिर न उठा कहा उठ अब तू मेरे हुक्म से
यह सुनकर बालक का शव जीवित होकर उठ बैठा
कबीर जी को प्रणाम कर वह घर के अन्दर पैठा
बुढ़ापे में जब काशी में रहना दूभर कर दिया
तंग आकर तभी आपने मगहर को प्रस्थान किया
एक सौ उन्नीस वर्ष की आयु में तन छोड़े प्राण
जाते- जाते कर गए कबीरपंथ का नव निर्माण
निश्छल,साधुता के लिए नाम सदा अमर रहेगा
कबीर की कहानी हर एक पत्थर शजर कहेगा
भारत भूमि पर ही ऐसे दुर्लभ संत मिलते हैं
समाज कल्याण की खातिर जो तन धारण करते हैं
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कबीरदास जी की कुछ साखियों की बानगी प्रस्तुत हैं –
ऐसा कोई ना मिला,सत्त नाम का मीत।तन मन सौंपे मिरग ज्यौं,सुन बधिक का गीत।।
सुखके माथे सिल परै,जो नाम हृदय से जाय। बलिहारी वा दुख की,(जो)पल पल नाम रटाय।।
तन थिर,मन थिर,बचन थिर,सुरत निरत थिर होय।कह कबीर इस पलक को,कलप न पावै कोय।।
माली आवत देखि कै,कलियाँ करैं पुकारि।फूली फूली चुन लिये,काल्हि हमारी बारि।।
सोऔं तो सुपिने मिलै,जागौं तो मन माहिं।लोचन राता,सुधि हरी,बिछुरत कबहूँ नाहिं।।
हँस हँस कंत न पाइया,जिन पाया तिन रोय। हाँसी खेले पिउ मिलै,तो कौन दुहागिनि होय।।
चूड़ी पटकौ पलंग से,चोली लावौं आगि।जा कारन यह तन धरा,ना सूती गल लागि।।
सब रग ताँत,रबाब तन,बिरह बजावै नित्त।और न कोई सुनि सकै,कै साईं,के चित्त।।
कबीर प्याला प्रेम का,अन्तर लिया लगाय।रोम- रोम में रमि रहा, और अमल क्या खाय।।
राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)