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श्री चैतन्य महाप्रभु

श्री चैतन्य महाप्रभु

जगन्नाथ मिश्र,शचीदेवी को खुशियां मिली अपार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

शक संवत चौदह सौ सात फाल्गुन शुक्ल पन्द्रह
पश्चिम बंगाल नवद्वीप नामक सुन्दर सी जगह
श्रीकेशव के अनन्य भक्त पूर्णब्रह्म साकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

सभी लोग इन्हें राधा का अवतार मानते हैं
बंगाल वैष्णव इन्हें पूर्णब्रह्म जानते हैं
जीवन के अमिट छः वर्ष दिया राधाभाव गुजार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

तब महाभाव के सारे लक्षण प्रतीत होते थे
श्री कृष्ण विरह में व्याकुल हो चीखते, रोते थे
पत्थर हृदय भी पिघल कर बन जाते थे जल धार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

इनके व्यक्तित्व का सभी पर प्रभाव ऐसा था
इनसे प्रेरित हो जगत कृष्ण भक्त बन बैठा था
सार्वभौम, प्रकाशानन्द को दिया नव आधार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

जगाई-मधाई जैसे दुष्टों को संत बनाया
अपने विरोधियों के मन में भक्ति अलख जगाया
शस्त्र डाल नौरोजी दस्यु ने भक्ति की स्वीकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

एक काजी ने लोगों के भड़काने में आकर
संकीर्तन का ढोल फोड़ दिया प्रकोप दिखाकर
सपनें में नृसिंह जी बोले दूंगा तुझे संहार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

डरकर उसने महाप्रभु से क्षमा-याचना मांगी
तब से उसके मन में भक्ति श्रद्धा भावना जागी
महाप्रभु प्रधान उद्देश्य था भगवद् भक्ति प्रचार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

दूसरे धर्म,साधन की कभी निन्दा न करते थे
जगत में प्रेम और शान्ति फैलाते रहते थे
प्रभु सिद्धांतों में द्वैत, अद्वैत की बहती रसधार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

भगवन्नाम कीर्तन को जीवन आधार बनाया
श्री राधाभाव को सबसे ऊंचा भाव बतलाया
भगवन्नाम कीर्तन से होता जीवों का उद्धार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

श्रीकृष्ण जी की भक्ति में सदैव लीन रहते थे
चैतन्य कृष्ण प्रेमी हरे कृष्ण सदा रटते थे
हरे कृष्ण महामंत्र मिटे जीवन का अन्धकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

भजन के साथ दैवीय सम्पत्ति अर्जन बतलाया
भगवन्नाम की शक्ति से जग को अवगत करवाया
भगवन्नाम कीर्तन से मिले परम धाम अधिकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

दया, अहिंसा,मत्सर शून्यता,समता, उदारता
मैत्री,तेज, धैर्य,सत्य, परोपकार,निष्कामता
दैवीय सम्पत्ति के प्रधान लक्षण के हैं प्रकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

आचरण की पवित्रता पर ज्यादा जोर देते थे
कोई शिष्य स्त्री से बात न करे गौर करते थे
शिष्यों खातिर रखते कठोर नियम ,आचार- विचार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

एक बार शिष्य के वृद्ध स्त्री से बात करने पर
प्रिय हरिदास का दिया सदा के लिए परित्याग कर
जबकि वह निर्दोष थे हृदय भावों के बड़े उदार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

चौबीस वर्ष अवस्था गृहस्थ आश्रम में बिताई
न्याय के थे यह पण्डित इनका नाम था निमाई
न्यायशास्त्र पर ग्रन्थ लिखा देख मित्र बही अश्रुधार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

भय था ग्रन्थ के कारण आदर कम हो जाएगा
महाप्रभु जैसा कोई त्याग कहां कर पाएगा
अपना लिखा ग्रन्थ बहा दिया बहती गंगाधार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

भार्या लक्ष्मी देवी का निधन हो जाने के बाद
श्रीविष्णुप्रिया से ब्याह कर जीवन हुआ आबाद
भार्या के प्रति रखते थे हमेंशा पवित्र सुविचार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

संत केशव भारती से संन्यास की दीक्षा ली
काशी के संतों को भगवत् प्राप्ति की शिक्षा दी
बिन पूर्ण वैराग्य के दीक्षा देना बेकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

इनके जीवन में कई अलौकिक घटनाएं हुईं
जिनसे ईश्वर रुप होनें की समानताएं हुईं
अद्वैत जी को प्रभु रुप दरश कराया एकबार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

शंख, चक्र,गंदा,पद्म मुरली कर हाथ में धारण
नंद जी को षट्भुज रूप दिखाया बन नारायण
दूजी बार चतुर्भुज दरश कराते लीलाधार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

तीजी बार द्विभुज कृष्ण रूप में दरश देते हैं
बलराम, कृष्ण रूप धर माँ का मन हर लेते हैं
राय के सामने प्रकट हुए युगल रूप करतार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

यह देख रामानंद मूर्छित हो भूमि पर गिरे
हरे कृष्ण जपते हुए रामानंद दर- दर फिरे
डूबती नौका की हरी बनते सदैव पतवार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

जीवन के शेष दिन जब यह नीलांचल रहते थे
बन्द किवाड़ी से बाहर निकल आया करते थे
उस समय बदन जोड़ के खुल गए थे सारे तार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

जिससे इनके अवयव बहुत ही लम्बे हो गए थे
कछुए के अवयवों की भाँति बहुत सिकुड़ गए थे
इनका शरीर हो गया मिट्टी लोंदे के आकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

असाध्य रोगी को भी रोगमुक्त कर देते थे
कोढियों का कोढ़ मिटाकर पीड़ा हर लेते थे
दक्षिण में श्रीखण्ड गए नरहरि के गाँव सरकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

नित्यानंद जी को शहद की आवश्यकता आई
सारे सरोवर के जल को तब मधु दिया बनाई
जिससे सरोवर का जल आजतक है मधु रसदार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

यह सरोवर मधुपुष्करिणी नाम से विख्यात हुआ
जिसका सुमधुर जल पीकर हर खुशहाल जात हुआ
जिसका वर्णन भक्तमाल के करते टीकाकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

श्री प्रबोधानन्दजी ने श्री भक्तमाल ग्रन्थ में इनके विषय में कुछ इस प्रकार लिखा है-

गोपिन के अनुराग आगै आप हारे श्याम जान्यो यह लाल रंग कैसे आवै तन में।
ये तो सब गौर तनी नख सिख बनी ठनी खुल्यौ यों सुरंग अंग अंग रैंगे बन में।।
श्यामताई माँझ सों ललाई हूँ समाई जोड़ी ताते मेरे जान फिरि आई यहै मन में।
‘जसुमति सुत’ सोई ‘शची सुत’गौर भये नये नये नेह चोज नाचैं निज गन में।।
आवै कभूँ प्रेम हेमपिण्डवत तन होत कभूँ संधि संधि छूटि अंग बढि जात है।
और एक न्यारी रीति आँसू पिचकारी मानों उभै लालप्यारी भावसागर समात है।।
ईशता बखान करौ सो प्रमान याकों काह? जगन्नाथ क्षेत्र नेत्र निरखि साक्षात है।
चतुर्भुज षटभुज रुप लै दिखाय दियो, दिये जो अनूप हित बात पात पात है।।

श्रीकृष्णचन्द्र गौरचन्द्र रुप में अवतरित हुए
संन्यास के बाद कृष्ण चैतन्य से विख्यात हुए
गौड़ देश ईश भक्ति न जाने किया भक्ति विस्तार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

‘हरिबोल,हरिबोल’ सुना प्रभू प्रेम में डुबा दिया
निज पार्षद को जग के उद्धार लायक बना दिया
वैष्णव शिरोमणि बन करते लोगों पर उपकार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

करोड़ों अजामिल जिनकी दुष्टता पर न्यौछावर
जगाई- मधाई को डुबा दिया प्रेम के सागर
प्रभु भक्ति, भजन में डूबकर हो गया बेड़ा पार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

इस घटना का श्री प्रियादास जी ने अपने कवित्त में इस प्रकार वर्णन किया है –

कृष्ण चैतन्य नाम जगत प्रकट भयौ अति अभिराम लै महन्त देह करी है।
जितौ गौड़ देश भक्ति लेसहूँ न जानै कोई सोऊ प्रेमसागर में बोरयो कहि ‘हरी’ है।।
भए सिरमौर एक एक जग तारिये कों धारिबे कों कौन साखि पोथिन में धरी है।
कोटि कोटि अजामिल वारि डारैं दुष्टता पै ऐसेहूँ मगन किये भक्ति भूमि भरी है।।

प्रभु के अन्तिम बारह वर्ष कृष्ण विरह में बीते
आप पुरी के मन्दिर में भावावेश में रोते
शक संवत चौदह सौ पछपन बैकुंठ गए सिधार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

श्रीचैतन्य महाप्रभु हो गए महाप्रभु में लीन
दिन का तीसरा पहर और आषाढ़ मास के दिन
जाते- जाते दे गए सब को भक्ति का उपहार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने जब धरा लिया अवतार

राम जी तिवारी ‘ राम’
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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