मुंशी प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में संगोष्ठी
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में संगोष्ठी
लखनऊ, मुंशी प्रेम चंद जयंती के उपलक्ष्य में भाषा विभाग उत्तर प्रदेश के अधीन उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान इंदिरा भवन लखनऊ में “वर्तमान समय में प्रेमचंद की प्रासंगिकता” विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता विनय श्रीवास्तव निदेशक भाषा संस्थान ने की। मुख्य अतिथि डॉक्टर अनामिका श्रीवास्तव निदेशक प्रसार भारती एवं विशिष्ट अतिथि डॉक्टर अपूर्वा प्रवक्ता नवयुग कन्या महाविद्यालय थी। कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉक्टर रश्मि शील ने किया।
प्रो.अलका पांडेय ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने विभिन्न कहानियों/उपन्यासों के माध्यम से विभिन्न कुरीतियों विसंगतियों का खण्डन किया। उन्होंने माना कि साहित्य मशाल है जो समाज को दिशा दिखाता है। मुंशी प्रेमचंद का साहित्य मंगल का एक रूप है।
डॉक्टर अपूर्वा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों और उपन्यास से साहित्य को वह स्थान दिया जो पहले नहीं था ।कालजई इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके साहित्य में तत्व मौजूद हैं।
डॉक्टर अनामिका श्रीवास्तव ने कहा कि १९३६ में लखनऊ में प्रगति शील लेखक सम्मेलन में मुंशी प्रेमचंद ने अध्यक्षता की थी और चार साल तक लखनऊ में रहे।
डॉक्टर रश्मि शील ने कहा कि मुंशी प्रेम चंद प्रगतिवादी साहित्य के प्रेरणा स्रोत थे। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास हों या कथा साहित्य उसमे यथार्थवादी आदर्श की प्रतिष्ठा पाते हैं।
समारोह अध्यक्ष विनय श्रीवास्तव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक बने हुए है क्योंकि उनका साहित्य कालजई है। प्रत्येक आयु वर्ग का व्यक्ति मुंशी प्रेम चंद से परिचित है उनकी कहानियों को प्राइमरी से उच्च कक्षा तक पढ़ा है।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन अंजू सिंह ने किया।