Search for:

मेरा गांवः कल और आज

मेरा गांवः कल और आज

अबकी जब मैं गांव गया,
बूढ़े बरगद की छांव गया।

बरगद तक का रस्ता,
बिल्कुल बदल गया था,
पगडंडी वही पुरानी थी,
पर उसकी एक निशानी,
जो एक तलाव था,
नक्शे से हट गया था,
नई बस्ती से,
पूरा पट गया था।

फूस और खपरैल के झोपड़े,
अब थे बिल्कुल पक्के,
गांव की तरक्की देख,
हम थे हक्के-बक्के।

गांव के हर घर की छत पर,
तरक्की का एंटीना लगा था,
हर दरवाजे पर ओहदे का,
एक ठसक टंगा था।

ये अलग बात है कि,
जो दरवाजे,
खुले रहते थे हरदम,
वो सारे किवाड़,
अब बन्द थे एकदम।

घरों के दालान थे,
एकदम खाली-खाली,
वो कर रहे थे बयां,
रिश्तों की बदहाली।

न किसी आंगन से आती थी,
हाथ चक्की पीसने की आवाज़,
न ही सूप फटकने की,
सुनाई दी कोई साज़।

न ही सुनने को मिली,
ऊखल-मूसल की लय भरी ताल,
न दिखा किसी पोखर में,
मछलियों से भरा कोई जाल।

सर्दियों की सुबह न देखा,
किसी दालान पर अलाव,
न ही कोई काकी दिखी,
कुजड़े से करती मोलभाव।

न किसी ने पहचाना,
न आवाज़ देकर बुलाया,
हाथों से मेरे सामान लेने,
न ही कोई दौड़ा-दौड़ा आया।

न बच्चे मिले गलियों में,
खेलते, शोर मचाते हुए,
न औरते ही मिली,
ठिठोली करती या गीत गाते हुए।

हैरत में था मैं कि,
क्या ये वही गांव हैं,
जहां हमने अपना,
बचपन गुज़ारा था,
जहां हर एक को,
दूसरे से सहारा था।

आज वही गांव क्यों,
मुझसे इतना बेगाना था,
कल तक जहां हर घर में,
बेरोकटोक मेरा आना जाना था।

 

लगा कि कुछ कमी सी है,
मेरी आँख में क्यों नमी सी है,
क्या खोज रहा था,
जो मिल नहीं पा रहा था,
हर एक कदम, किसी
आशंका से डरा रहा था।

सब तो वही
पुराने चेहरे थे,
उनमें चेहरों पर क्यों,
अजनबीयत के पहरे थे।

कोई अपनेपन से,
लिपटा नहीं मुझसे,
बांहे फैलाकर कोई,
क्यों चिपटा नहीं मुझसे।

मैं निराश लौट रहा था,
कि बरगद की लताओं,
ने मुझको रोका,
ऐसा लगा कि जैसे,
मुझे किसी ने टोका।

 

कहीं से प्रश्न हुआ था,
क्या तुमने गांव को
वही अपनापन दिया,
जिसे तुम्हें पाने की थी आशा,
फिर कैसे कर रहे थे,
बिना प्रेम दिए,
प्रेम पाने की अभिलाषा।

गांव के सबसे वृद्ध,
और ज्ञानी अभिभावक,
वट वृक्ष से मुझे मिल,
गया था दिव्य ज्ञान,
क्षणभर में ही मिल गया,
मुझे छद्म अभिमान से निर्वाण।

अबके ठाना है गांव जाऊंगा
सबके दरवाज़े खटखटाऊंगा
चूमकर उन सभी के चेहरे
उनको कसकर गले लगाऊंगा।
प्रेम दूंगा और प्रेम पाऊंगा
सबके दिलों से दूरियां मिटाऊंगा।

– सन्तोष कुमार झा

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required