महावीर चक्र विजेता कर्नल संतोष बाबू
महावीर चक्र विजेता कर्नल संतोष बाबू
(अमृत महोत्सव के अन्तर्गत आयोजित देशभक्ति गीत में पुरस्कृत रचना)
देशभक्ति क्या होती है ये मुझको नही पता था
निबन्ध,कविता, कहानिओं को सतही तौर पर सुना था।
वीरगाथा प्रोजेक्ट ने दिया मौका वीरों को जानने का
पढ़कर लगा रक्त खौलने मेरी धमनी शिराओं का।
किस एक पर करूँ व्यक्त अपने विचार
सभी हैं पूरे देश के सम्मान के हकदार ।
चुना महावीर चक्र देश का द्वितीय सर्वोच्च सैन्य सम्मान
मिलता है उन्हें जो देते युद्ध में अतुल्य योगदान ।
सोलहवीं बिहार रेजीमेंट के कर्नल बी.संतोष बाबू की है ये कहानी
जिनके गलवान घाटी में रहते चीनी सैनिक भर रहे थे पानी।
श्री उपेन्दर और मंजुला जी की थे संतान इकलौती
अभिग्ना अनिरुद्ध के पिता और पत्नी थीं संतोषी ।
वर्ष तिरासी में पृथ्वी पर दो हजार में सेना में थे आए
किसको पता था रगों में अदम्य साहस भरकर लाए ।
पाँच मई की रात गलवान घाटी में शुरुआत हुई संघर्ष की
संतोष बाबू ने चीनी सेना से करी पहल बातचीत की।
पर वे धूर्त,चालबाज़,आतंकी कहाँ रुकने वाले थे
उनके तो अपनी भू सीमा को बढ़ाने के इरादे थे।
हिंसक झड़प शुरू होते न फिर देर लगी
लाए चीनी सैनिक डंडे जिन पर थीं कील लगीं ।
भारत के रणबांकुरे भी फिर उनपर बरस पड़े
चीनी सैनिकों के हमारे वीरों के आगे होश उड़े।
कर्नल संतोष बाबू समेत भारत के बीस जवान शहीद हुए
चीन के न जाने कितने सैनिक मिट्टी धूल हुए।
कर्नल संतोष बाबू का चेहरा आंखों के आगे घूम रहा
मैं भी उन जैसी वीर बनूं यही मस्तिष्क में कौंध रहा।
रक्त की एक एक बूँद किस तरह बहाई होगी
आत्मा से भारत माता की जय यही ध्वनि आई होगी ।
सर्वस्व सौंपते हैं देश को वीर सैनिक जब
चैन से सुरक्षित रह पाते हैं हमसब तब।
माखन लाल जी की कविता का पुष्प नही होना है
मुझे तो कर्नल संतोष जैसे सेना में भर्ती होना है।
इरा कपूर
असीसी काॅन्वेन्ट स्कूल, एटा