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निःशब्द ( प्रेरणादायक )

 

रूमीअपने गांव में दादाजी के साथ कुछ दिन के लिए छुट्टी मनाने अमेरिका के एक बड़े संस्थान से मैनेजमेंट की डिग्री लेकर आई थी। ब्रांडिंग के बारे में चर्चा करते हुए उसने दादाजी को मैकडोनल कंपनी का उदाहरण दिया। उसने बताया की किस तरह सत्तर साल पहले दो भाइयों ने कलिफ़ोर्निया के एक छोटे से रेस्टारेंट को एक विश्व प्रसिद्ध ब्रांड में बदल दिया और अरबों रुपये की कमाई की। आज इस कंपनी का विश्व के हर बड़े शहर में दुकान है और इसकी विशेषता यह है किजो ‘चिकन-बर्गर’ आप इस्ताम्बुल में खाते हैं बिलकुल वैसा ही न्यूयोर्क या लन्दन में खा सकते है।
इस पर दादाजी बोले,” बेटी, यह कोई नयी बात नहीं है। हमारे यहाँ भी जो समोसा या आलू का परांठा आप झूमरीतल्य्या में खाते है वैसा ही आगरा या पटना में भी खा सकते है। पर हमारा देश अमेरिका की तरह पूंजीवादी नहीं है इसलिए किसी रेसिपी को हमने एक व्यक्ति के नाम पेटेंट करके पैसा कमाने का जरिया बनाने की बजाय उसे सार्वजनिक उपयोग के लिए बांटना उचित समझा।”
दादाजी से ज्ञान की बात सुन कर वह निःशब्द थी और स्तब्ध भी।

दीपक दीक्षित

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