बहु पढ़ाओ;ससुराल बचाओ
बहु पढ़ाओ;ससुराल बचाओ
जिसने धरती आकाश दिया
*जिसने हर मानव को सम्मान दिया
उस परमपिता परमेश्वर का*
*वंदन है अभिनंदन है।
आज मैं जब सुबह उठी तो बहुत सारे प्रश्न एक साथ मुझे उद्वेलित कर रहे थे इनका समाधान खोजना अत्यंत आवश्यक है यदि हम देश के निर्माण में अपने जीवन का एक छोटा सा अंश भी देना चाहते हैं तो निम्न बातों पर विचार अवश्य करना चाहिए।
हमारा देश अनेक संस्कार और रीति-रिवाज और परंपराओं से बना है जिससे देश में उल्लास, *प्रसन्नता ,शालीनता,समर्पण और जीवन जीने की कला का दर्शन होता है।
हमारे देश चाहे विकसित हो रहा है विकासशील की ओर बढ़ रहा है मगर हमारे समाज की सोच अभी तक विकसित नहीं हो पाई है।
बहुत ही चिंतनीय विषय है जिस पर चिंतन किया जाना प्रत्येक समाज वर्ग का दायित्व है।
हमारी खुद के गुण और अवगुण ही हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं हमें स्वयं के होने का आभास करवाते हैं।
मगर हम झूठी परंपराओं खोखले रीति रिवाजो और अंधविश्वास के चक्कर में पड़कर स्वयं के जीवन को जीना भूल गए अपने जीवन की उन्नति का मार्ग बनाना भूल गए।
हम खोए रहते हैं अपनी ही उलझन में जहां पर कोई साफ रास्ता नजर नहीं आता केवल धुंधलापन का आवरण चारों ओर ढका हुआ है जिसे हम त्रस्त और ग्रस्त रहते हैं।
यह मानव जीवन एक उपहार के रूप में मिला है इसकी महत्व को क्यों नहीं समझना चाहते हैं लोग
यदि हमने मानव जीवन में स्वयं के साथ-साथ सभी के जीवन के उन्नति का के लिए कोई मार्ग प्रशस्त नहीं किया तो यह जीवन निरर्थक है।
इस जीवन की सार्थकता तभी है जब हम खुशी के साथ जीवन संपन्नता का समावेश करें।
निरर्थक बातों से बचें ।
ताने,उलहाने ,शिकायतें इत्यादि से दूर अपने जीवन को सार्थकता प्रदान करें।
क्या हम अपने जीवन में सभी के लिए प्रार्थना का समावेश नहीं कर सकते ?
क्या हम सर्वे भवंतु सुखिनः की स्थिति को अपनाते हुए सब की जीवन की मंगल कामना करने का उद्देश्य अपने समकक्ष नहीं रख सकते?
हम क्यों इतने स्वार्थी हो गए हैं कि स्वयं ही स्वयं की दिशा का निर्धारण नहीं कर पाते हैं।
उलझा उलझा जीवन और उलझे उलझे धागे का क्या किसी एक छोर से दूसरे छोर तक ले जा सकते हैं?
क्या इस प्रकार का जीवन हमें खुशी प्रदान कर सकता है?
हमारे जीवन का मूल्य तभी सार्थक होगा जब हम अपने जीवन में खुशियों का समावेश करें अपने जीवन को समझे स्वयं की खुशी के साथ-साथ हर व्यक्ति विशेष की खुशियों के लिए हम प्रार्थना करें।
ईश्वर ने मानव जीवन के रूप में स्त्री पुरुष दोनों को इस धरती पर भेजा है ताकि वह अपने जीवन का सदुपयोग करते हुए समाज के कल्याण के कार्य करें और अपने जीवन को सार्थक बनाते हुए अंतिम पड़ाव तक अनेक उपलब्धियां के साथ जीवन को खुशी-खुशी जिए।
लेकिन हमारा समाज अभी रूढ़िवादी अंधविश्वासों की दुनियां बंधा हुआ है, जहां पर उन्नति का मार्ग अवरुद्ध है मानसिक विचारों की तो बात ही छोड़ दीजिए उन्हें स्वयं की मानसिक स्थिति का मूल्यांकन स्वयं ही नहीं करना आता तो वह दूसरे के जीवन के दिशा का निर्धारण कैसे करेंगे स्वयं की दृष्टि को सदैव ही सही समझते हैं।
जीवन जीने की कला ,जीवन का सही मार्गदर्शन, समय का सदुपयोग ,हर एक व्यक्ति के जीवन के महत्व को समझना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
सबसे पहले तो मानव जीवन को जीना आना चाहिए और यह जीवन तभी हम खुशी पूर्वक जी सकते हैं जब हमारे जीवन में संयम, भक्ति ,क्षमा ,दया, दानशीलता, करुणा ,परोपकार की भावना का समावेश हो।
उसके बाद आते हैं रिश्ते जहां पर हमें मिलते हैं भाई बहन परिवार माता-पिता पति-पत्नी सास ससुर देवर नंद इत्यादि।
यहां तक तो सभी ठीक है लेकिन एक विचारणीय प्रश्न है संबंध मधुरता से जिए जाएं तो वह खुशी प्रदान करते हैं।
लेकिन इन्हीं संबंधों में घुटन हो ताने उलाने हो तो है हमें काल कोठरी से प्रतीत होते हैं।
क्योंकि मानव स्वभाव हमेशा दूसरों के दुर्गुणों को इंगित करता है स्वयं के दोषों को मिटाने का प्रयास नहीं करता।
रिश्तों में बंध कर स्वयं से स्वयं की अपेक्षा न होकर रिश्तो से हम अपेक्षा करने लग जाते हैं और रिश्तो के बंधन को सच मानकर हम ताने उल्हालो की बौछार करते रहते हैं।
शिकवे शिकायतों से स्वयं का जीवन अंधकारमय बनाते हैं
और हम व्यक्ति से संबंधित उसका जीवन भी हम क्लेशों से भरपूर कर देते हैं।
जिससे क्या हमारे जीवन का कल्याण संभव है?
रिश्ते तभी सार्थकता प्रदान करते हैं जिसमें प्रेम भाव समर्पण एक दूसरे की भावना का सम्मान हो और एक दूसरे की मनोदशा को समझते हुए उसके सपनों को सार्थक करने में हम उनको सहयोग प्रदान करें।
लेकिन बेटा और बेटी में अंतर हमारे समाज की बहुत ही सोचनीय स्थिति को पैदा करता है।
हमारे समाज में बेटे के सपना को तो सार्थक समझा जाता है मगर जो बेटियां अपने सपनों को साकार करना चाहती है तो उस पर बंदीसे और रोक लगा दी जाती है।
और यही बंदीशे और रोक बेटी के जीवन को अंधकार पूर्ण बनती है।
पहले के जमाने में धन उपार्जन का साधन सिर्फ बेटे के ऊपर ही होता था और महिलाओं को घर का काम संभालना होता था लेकिन आज निर्माण के पावन युग में मशीनों के द्वारा सभी कार्य को सहज जी पूर्ण किया जा सकता है और इसी सहजता ने महिलाओं और पुरुषों को जीवन जीने का ढंग भी सिखाया है।
परतंत्रता में बंधी महिलाएं
जब किसी की बहू इत्यादि बनेगी तो क्या हम उससे अच्छे वृक्ष और अच्छे बीच की कल्पना कर सकेंगे।
अच्छे वृक्ष और फल फूल से लदे पेड़ की आशा तभी कर सकते हैं जब हम उपजाऊ भूमि और अच्छी उर्वरा के साथ उसका पालन करें।
यह तो तभी संभव है जब वह हमारे घर में बेटी या बहू के रूप में रहे तो हम उसकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उसके भी सपनों को सार्थक करने के लिए हम उसको सहयोग प्रदान करें।
ऐसा नहीं है कि बेटियां स्वार्थी होती है बल्कि बेटियां और बहुएं निस्वार्थता से परिवार का दायित्व संभालती है बच्चों का और पति का और सब परिवार का पालन पोषण बहुत ही कुशलता से करना जानती है।
लेकिन हमारे समाज की जो मानसिक स्थिति है वह उस पर अंकुश लगती है जहां पर हर बेटी बहू को घुटन महसूस होती है।
मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैं जिस परिवार से आई वहां पर और मैं जिस परिवार में आई वहां पर दोनों में मुझे भरपूर सम्मान और प्यार मिला मेरे सपनों को साकार करने के लिए मेरे परिवार और पति और बच्चों ने पूरा सहयोग किया।
यह तभी संभव है जब हम स्वच्छ दृष्टिकोण को अपनाए।
हमारी सोच को स्वच्छ मानसिकता के लिए अच्छे दायित्वों का ग्रहण करना बहुत जरूरी है।
ऐसे संगठनों से जुड़े जहां मानसिक विकास की संभावना है जहां पर हमें जीवन जीने की कला सिखाई जाती है जहां पर इस जीवन के महत्व को समझते हुए हर एक क्षण को महत्वपूर्ण बनाया जाता है और समान दृष्टिकोण के साथ जीना जीवन को जीना सिखाया जाता है।
जब तक हमारे समाज का दृष्टिकोण नहीं बदलेगा ।
बहु के जीवन को कैद करके रखना चाहेंगे, उसके गुणों को उसकी भावनाओं को बल नहीं देंगे।
चाहे वह लाख प्रार्थना करती है अपने सपनों को साकार करने के लिए लेकिन जब तक परिवार का साथ नहीं मिलेगा तो उसे घुटन ही महसूस होगी।
सपने अपने साकार करने के लिए सभी को स्वतंत्र छूट है जिस प्रकार भगवान ने धरती और आसमान सभी को समान रूप से प्रदान की है ।
उसी प्रकार जीवन जीने की इच्छा जीवन के सपनों को साकार करने के लिए
बचपन से प्रौढ़ अवस्था तक का सफ़र है।
जीवन को जीना हर एक का स्वतंत्र अधिकार है।
संस्कारों और परंपराओं में बंध कर प्रत्येक व्यक्ति स्वच्छंद और उन्मुक्तता के साथ जीवन जी सकता है।
खुशी-खुशी जीवन यापन कर सकता है अपने जीवन में खुशियों का समावेश कर सकता है।
लेकिन जो है गलत सोच और विरोध की भावनाएं हैं बेटियों के प्रति हमारे समाज की सोच बहुत ही विकृत हो चुकी है जो बेटियों को कभी भी स्वतंत्रता प्रदान नहीं करना चाहता और आपने गलत सोच की वजह से उनके जीवन को अंधकारमय बनता है।
जब तक हमारे समाज की सोच विकृत रहेगी बेटियों में सम्मान और उनके सपनों के साथ खड़े होने की भावना नहीं होगी
तो सोचिए वह एक वर्ष से 100 साल तक का जीवन कैसे व्यतीत करेगी।
खाना खाना और बनाना तो सभी के जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, वह तो किसी न किसी प्रकार से मिल ही जाएगा जब हम अपनी दिशा का सही निर्माण करेंगे जीवन धन जीवन जीने की कला को सीखेंगे।
नहीं तो यह जीवन बहू और बेटियों के लिए अंधकार की काल कोठी के समान बर्बाद फसल की ओर लेकर जाएगा जहां पर फसल अच्छी नहीं होगी तो जीवन अच्छे बनने और जीवन को सुधार की कामना कैसे की जा सकती है।
अच्छे पेड़ पौधे कहलाते बगीचे और फल फूल स्वस्थ जीवन के लिए बहुत जरूरी है इसी प्रकार बेटियों के जीवन के लिए उनके सपनों के साथ होने के लिए हम सभी में अच्छी सोच का होना आवश्यकहै।
आज हमारी सोच हमारे समाज की दशा बहुत ही दयनीय है जो सिर्फ कामवासना से परे किसी महिला को कोई स्थान ही नहीं देता है।
सबसे पहले विकृत मानसिकता को हटाना बहुत जरूरी है यदि हम अच्छे समाज और देश की कल्पना करते हैं तो वहां स्वस्थ मानसिकता का होना अत्यंत आवश्यक है।
स्वस्थ मानसिकता ही स्वस्थ निर्माण की जननी है और स्वस्थ समाज निरोगी काया और हमारी धन का सदुपयोग है।
जब हमारा धन अच्छे कार्यों में लगेगा तो निश्चय ही हम और सुखी होंगे।
आज एक परिवार के पालन करने के लिए केवल पुरुष वर्ग का ही काम करना आवश्यक नहीं है बल्कि महिलाओं को भी वह स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
बच्चों की शादियों में रुकावट का यह भी एक बड़ा कारण है जहां पर धनी संपन्न परिवार पढ़ी-लिखी शिक्षित बहू को उसके जीवन जीने के ढंग को नहीं अपनाना चाहता बल्कि अपनी वही रूढ़िवादी परंपराओं में बांधकर उसे एक कैद पंछी की तरह रखना चाहता है।
बहू और बेटी भी एक धन के समान है उसकी रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है क्योंकि वह पालन करता है वह तो सिर्फ देना और देना जानती है वह अपने सपनों को साकार करती भी है तो भी वह देने की भावना के साथ अपने कि सपनों के साथ जीना चाहती है।
बल्कि किसी भी परिवार को यह समझना चाहिए कि शिक्षित बच्चा हमारे परिवार की उन्नति के लिए सहायक सिद्ध होगा हमें गौरवान्वित करेगा और हर पल आनंदित ही करेगा।
आओ हम सब का सम्मान करें उनके सहयोगी बने और उनको ऐसा जीवन दे कि हमारे मानव जाति पर कोई कलंक नहीं बल्कि सम्मान का टीका लगे।
सम्मान का जब टीका लगता है तो व्यक्ति गर्व महसूस करता है और अपने को सम्मानित स्थिति में देखकर मन में प्रसन्नता से भर उठता है और ऐसा ही सम्मान महिलाएं भी चाहती हैं वह अपने जीवन को सम्मान के साथ जीने का अधिकार मांगती है ।
जहां पर स्वच्छ दृष्टिकोण हो समानता का अधिकार हो उसे उसे अधिकार में कुछ धन संपत्ति नहीं चाहिए बल्कि उसकी तो जीवन जीने के लिए सही दिशा में जो वह निर्माण कर रही है उसमें सभी का सहयोग चाहिए।
जब तक समाज की स्वस्थ मानसिकता नहीं होगी तब तक ससुराल बनाम काल कोठी सी प्रतीत होगी।
समाज का सुधार तभी संभव है जब मानसिकता का सुधार किया जाए।
हमारे देश में अनेक सुख सुविधाओं का सामान उपलब्ध करवाया है अनेक साहित्यिक और लेखन के माध्यम से जागरूक किया है और वही जागरूकता व्यक्तित्व और मानसिक विकास में सहायक सिद्ध होती है।
लेकिन पुरुष वर्ग सिद्धांत वर्धन कोई इकट्ठा करने की लालसा में माननीय जीवन को भूल गया है मानवीय जीवन के महत्व को भूल गया है वह केवल महिलाओं को घर के कार्यों तक ही सीमित देखना चाहता है वह नहीं चाहता कि महिलाओं का जीवन भी उद्देश्य पूर्ण और सफल रहे यह मानसिक विकृति का ही तो परिचय एक है जहां मानव पैसे की अधिकता को अपने जीवन का विकास समझ बैठता है और समाज में अपने परिवार का दायित्व ग्रहण करने के लिए स्वयं को बाधित समझता है।
वहीं महिलाएं हर क्षेत्र में घर के साथ-साथ सामाजिक दायित्व को निभाते हुए अपने जीवन को खुशहाल बनाना चाहती हैं तो इसमें गलत भी क्या है।
आज महिलाएं जागरुक है अपने मन में झंझावातों को नए रखते हुए सम्यक दृष्टिकोण के साथ अपने जीवन को जीना चाहती है।
यह एक लंबी जीवन यात्रा है जो पुरुष और महिलाओं को समान रूप से जीनी होती है जीवन को जीना सही मायने में हमें बहुत आनंद प्रदान करता है।
लेकिन जब पुरुष की विकृत मानसिकता महिलाओं को सिर्फ और सिर्फ घर में ही कैद देखना चाहती है तो वह महिला अपने अंदर एक घुटन महसूस करती है जो है अपने शब्द और वाक्य से कभी भी नहीं बता पाती है।
यदि हम अपने परिवार को खुशहाल देखना चाहते हैं तो हर महिलाओं का समर्थन करें उन्हें सही गलत का रास्ता दिखाएं और जब परिवार किसी भी महिला के साथ खड़ा रहता है तो सामाजिक की कोई भी घिनौनी दृष्टि उसे पर पक्षघात नहीं कर सकती।
महिलाएं व्यंजन के साथ अपनी अभिव्यंजना को परोसना बखूबी जानती है।
वह सभी सुविधाओं के सामान के साथ जीवन को सहज और सरल बनाकर जीने में विश्वास करती है।
महिलाएं तो समर्पण की मूर्ति होती है वह हमेशा परिवार समाज देश को देती है और देती ही है।
ऋतु गर्ग, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल