Search for:

वह भीख मांगती

वह भीख मांगती
_____________

वह भीख मांगती!
हे माई कुछ दे दो
रटी रटाई,
यह राग आलापती
वह भीख मांगती।

दूर तटस्थ बैठा मैं
यूं ही उसे देखते हुए
सोंच रहा था,
गली गली वह
फेरी लगाती,
क्यूं भीख मांगती।

यौवन की दहलीज पर
कदम रख चुकी वह,
तन पर मैली कुचैली
साड़ी लपेटे,
और कंधे पर
भीख की गठरी लटकाए,
द्वारे द्वारे
घर घर घूमती,
वह भीख मांगती।

ऊंच नीच के
ज्ञान से अनभिज्ञ,
अनेक गली मोहल्लों से
गुजरती हुई,
अपने खट्टे मीठे अनुभवों को
सहेजती बटोरती,
कुकुरमुत्तों सा उग आए
व्यभिचारियों से
नजरें बचाती,
वह भीख मांगती।

माई माई हांक लगाते
द्वार पर मेरे
कब से खड़ी थी,
परन्तु मां के लिए
यह बात
कोई नई नहीं थी।
थक हारकर
बैठ गई वह,
बार बार आंचल संभालती,
वह भीख मांगती।

अपने सभी काम
निबटा चुकने के बाद,
क्रोध से
जलती भुनती मां,
एक छोटे से पात्र मे
कुछ मुट्ठी अनाज लिए
बाहर निकली,
और वेदनायुक्त
कटु वचन बोलते हुए,
उसकी झोली मे
डाल दी।
कातर दृष्टि से
मां को देखती,
खड़ी हुई वह
गठरी उठाती,
वह भीख मांगती।

मां की बातों से आहत
आंखों में आए अश्रुओं को
अंतर में पीती,
एक तरफ बढ़ते हुए
मुझे काफी समय से
देखता पाकर
ऐसे देखी,
जैसे कह रही हो
मै भीख मांगती।

अनिल सिंह बच्चू

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required