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देव दिवाली

देव दिवाली

कार्तिक पूर्णिमा का त्यौहार है
वाराणसी में मनाया जाता है
यह विश्व में प्राचीन शहर है
काशी की संस्कृति परंपरा है
लोग देव दिवाली पर्व मनाते विजया!

कार्तिक पूर्णिमा का दिन था
त्रिपुरासुर नामक राक्षस था
भगवान शिव ने वध किया था
देव दिवाली मनाया गया था
सब देवताओं ने खुश होकर विजया!

राक्षस वध से खुश हुए थे
सभी देवता पृथ्वी पर आए थे
दीप जलाकर खुशियां पाए थे
तब दीपावली पर्व मनाए थे
इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते विजया!

कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में
यानी देव दिवाली वारणाशी में
एक अद्भुत नजारा देखने में
हजारों लोग यहां गंगा नदी में
जलाए दीप दान करते हैं विजया!

तारकासुर के तीन पुत्र थे
(तारकाक्ष, कमलक्ष, विद्युन्माली)
ब्रह्मा से अमरत्व वर मांगे थे
लेकिन ब्रम्हा मना कर दिए थे
वे दूसरा वरदान मांगे थे
कोई उन्हें एक ही बाण से मारे विजया!

वरदान पाकर त्रिपुरासुर
बहुत शक्तिशाली हो गए और
किया तीनों लोकों पर वार
ऋषि मुणियों पर अत्याचार
आतंक मचाया सब लोगों पर विजया!

सब देवता भी परेशान हुए
उसके अत्याचार देख न पाए
भगवान शिव से प्रार्थना किए
त्राहिमाम कहना शुरू किए
वध करने का संकल्प लिया शिव विजया!

त्रिपुरासुर के वध के लिए
एक दिव्य रथ का निर्माण किए
शिव जी ने पृथ्वी को रथ बनाए
सूर्य और चंद्र को पहिए बनाए
मेरु पर्वत को धनुष बनाए विजया!

भगवान विष्णु बाण बने
वासुकी (नाग)धनुष की डोर बने
उस रथ पर सवार करने
चढ़ गए भगवान शिव जी ने
अभिजित नक्षत्र के लिए देखा विजया!

अभिजित नक्षत्र देखते ही
वें पुरियां एक सीध में आते ही
शिव ने एक ही बाण से ही
तीनों परियों को भस्म करते ही
त्रिपुरासुर का अंत हो गया विजया!

त्रिपुरासुर का वध का दिन था
कार्तिक पूर्णिमा का दिवस था
शिव की नगरी वह काशी था
दीप दान कर खुश हुआ था
सब देवता गण खुशी खुशी से विजया!

तब से कार्तिक पूर्णिमा को
शिव की नगरी वाराणशी को
गंगा में दिए छोड़ने की प्रथा को
लोग देव दिवाली मनाने को
असंख्या जन काशी पहुंचते हैं विजया!

जी.विजयमेरी
अनंतपुर जिला, आंध्रप्रदेश

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