आज की मुलाकात
आज की मुलाकात
मै घर से बड़ी बन ठनकर निकला था। जैसे कभी 15-16 साल पूर्व बन सबर कहीं निकलता था और अंदर ही अंदर अपनी सुन्दरता पर इठलाता था। वह मैट्रिक इंटर में पढ़ने का समय हुआ करता था। कुछ नई-पुरानी बातों का समावेश कर सोचते हुए चला जा रहा था। इस समावेश में कुछ एक पुरानी यादें कई पुराने साथियों का याद दिलाए जा रहा है। वह भी एक समय था ना कोई गम ना कोई फिक्र। था तो सिर्फ और सिर्फ आनन्द पूर्णा मौज मस्ती का।
मैं इस तरह की कई बातें सोचते सोचते मस्ती में चला जा रहा था कि – तभी एकाएक अचानक वह रास्ते में मिल गयी। काफी दिन हो गये थे उससे मिले। मैं उसे अपने तरफ आते देख जरा असहज महसूस करा रहा था। करता तो क्या करता मैं अभी तो बिल्कुल भी तैयार नहीं था इस मुलाकात के लिए। उसे अपनी तरफ तेजी से आते देख अंदर से एक एहसास हो रहा था कि आज जो कपड़े मैंने पहना है उस कपड़े में उसके सामने खड़े रह पाना मुश्किल है। पर उसका इरादा बिल्कुल स्पष्ट था। वह बेधड़क अपने मनोहारी अंदाज से हमारी ही ओर चली आ रही थी। मैं अंतर्द्वंद्व में था। कभी मुझे लगता साइड होकर खड़े हो जाऊ और उसे जाने दूं। फिर कभी लगता था सीधे सीधी उससे मुलाकात करूँ। बहुत दिनों के बाद तो भी नजर आई है। खैर मैं अनमने ढंग से उसकी तरफ बढ़ने लगा। मुझे लग रहा था थोड़ी देर की मुलाकात के बाद वह लौट जाएगी। पर ऐसा नहीं हुआ वह साथ साथ ही चलने लगी। मेरे लाख न- नुकर करने के बाद भी वह रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। अब मैं भी मजबूर होकर उसके साथ साथ आगे बढ़ने लगा। इधर मैं मजबूर होकर उसके साथ चल रहा था, उधर वह अब अपनी स्नेहपूर्ण बौछारों के साथ मेरे तन- मन को भीगो रही थी। कुछ ही देर में तो मैं उसके स्नेहपूर्ण बौछारों से भींगता गया, भींगता गया। आज से 15 वर्ष पूर्व इसके स्नेहपूर्ण बौछारों से भींगना बहुत पसंद हुआ करता था मुझे। पर आज बिल्कुल भी मन नहीं था। बात कोई विशेष नहीं थी, बस किसी अन्य महत्वपूर्ण कार्य के लिए तैयार होकर निकला था मैं। महत्वपूर्ण कार्य हो या विशेष, इससे उसको क्या लेना- देना
उसकी मनमर्जी के आगे मेरी एक ना चली। पहले भी न चलता था सो आज कैसे चलता। अब मैं विवश होकर न चाहते हुए भी पूरी तरह उसकी आगोश में आ गया। उसकी हर एक बूंदें मुझे अंदर तक भींगोती गयी। बस कुछ ही छनों में मैं पूरी तरह से सराबोर हो गया उसके साथ।
तन और मन तो तृप्त हो गए पर मेरे सभी कपड़े खराब हो चुके थे। अब मेरे लिए मुश्किल थी कि मैं उन्हीं कपड़ों में कैसे उस महत्वपूर्ण कार्य को संपादन करूं जिसके लिए मैं तैयार होकर निकला था। सच कहूँ तो यह बेमौसम की बारिश भी ना, बड़ी परेशान करती है और अपने स्नेहपूर्ण बौछारों से मेरे जैसे राह चलते व्यक्तियों को तन-मन से भींगो देतीं है।
एक डेढ़ घंटे की बारिश ने मेरे तन- मन को तो भींगो ही दिया पर कुछ ही छनों में भागलपुर स्मार्ट सिटी का स्मार्ट रुप को भी दिखा दिया। कल तक जो स्मार्ट फूल नाले में नजर आता था,आज वही सड़क के बीचों- बीच अपनी सुन्दरता दिखा रहा था। स्थिति ऐसी थी कि पैदल चल रहे लोगों को पता ही नहीं चलता था नाले में चल रहा हूंँ या सड़क पर। अन्य लोगों के तरह मुझे भी स्मार्ट सड़क, स्मार्ट नाले, नालों से निकले स्मार्ट फूलों से गुजरते हुए एहसास हो रहा था कि मैं स्मार्ट शहर भागलपुर से गुजर रहा हूँ।
खैर जो भी हो मैं अपने पैरों में स्मार्ट कीचड़ लेकर रुम पहुँच गया, जहाँ मैं बिना स्नान किए रह ही नहीं पाया। अगर बारिश में भीगे हुएं पल को भी स्नान मान लूं तो 10 घंटे के अंदर तीसरी बार स्नान कर रहा था मैं। तीसरे स्नान के साथ ही मेरे शरीर को आराम की भी जरूरत महसूस होने लगी। तभी मैंने एक नींद की झपकी ले लेना ही उचित समझा। उस एक झपकी ने जमालपुर जाने वाली तीन ट्रेनों (दुमका पटना,गोड्डा रांची और साहेबगंज दानापुर) को छुड़वा दिया। आखिरकार लोकल पकड़ कर जमालपुर आ गया, जहाँ पहले से ही विमल किशोर सर बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। हर रोज के तरह हम दोनों एक दूसरे से मिले। खैर अधिक विलम्ब होने के कारण हम दोनों की ज्यादा बातचीत नहीं हो पाई पर उनके कुछ सवालों ने ही मुझे इतना लिखने के लिए मजबूर कर दिया। मुझे नहीं पता मैं कैसा लिख पाया हूँ।
डॉ आलोक प्रेमी
जमालपुर