कवियत्री, उपन्यासकार मंजूषा राजाभोज का लेखनी के साथ अटूट रिश्ता
कवियत्री, उपन्यासकार मंजूषा राजाभोज का लेखनी के साथ अटूट रिश्ता
इनका नाम सौ. मंजूषा राजाभोज है। इनका जन्म 1970 में जबलपुर में हुआ था। ये गिरधारी लाल उजवने और स्व. सौ.शीला देवी उजवने की संतान है। ये भंडारा (महाराष्ट्र)
की निवासी है इनके पति अशोक राजाभोज है। इन्होंने होमसाइंस कॉलेज, जबलपुर से बी. ए. की डिग्री प्राप्त की है। ये कई वर्षों से लिख रही है।
इन्होंने बताया कि बचपन से ही इन्हें पुस्तक पढ़ने का शौक था इनके पिताजी हमेशा अच्छी-अच्छी किताबें खरीद कर देते थे इनकी पढ़ने के सफर की राहें कब लेखन की राहों से जा मिली इन्हें पता ही न चला जो अब तक जारी है |
गृहस्थ जीवन से कुछ पल अपनी लेखनी के लिए निकाल पाना इनके लिए तो बहुत मुश्किल है लेकिन इनका मानना है जहाँ चाह, वहाँ राह | शुरू-शुरू में ये अपनी लेखनी को एक डायरी में कैद करके रखती थी लेकिन समय के साथ-साथ इनकी रचनाएं कई पत्र पत्रिकाओं,समाचार पत्रों और साझा संकलनो का हिस्सा बन गई जो अब तक जारी है। इन्हें कई सम्मान पत्र प्राप्त हो चुके है और ईश्वर ने चाहा तो यह सिलसिला वर्तमान में भी जारी रहेगा।
इनका एक उपन्यास “जिंदगी के कई रंग, दोस्ती के संग” और एक एकल काव्य संग्रह “मंजू के दिल से काव्यांजलि” (जो इनकी स्व. माँ के लिए इनकी लेखनी के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि है) प्रकाशित हुई है | जिसे लोगों ने बेहद सराहा है | जिसकी वजह से इनकी रुचि लेखन में दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है | ये कई ऑनलाइन मंच में भाग ले चुकी है और आगे भी जारी रहेगा।
इनका मानना है कवि के लिए कविता वह खूबसूरत कल्पना है, एहसास है जो मनोरंजन के साथ-साथ एक भावनात्मक एहसास लिए हुए लोगों के समक्ष एक प्रेरणादायक संदेश प्रस्तुत कर जाती है |
इनकी नजर में हर साहित्यकार की लेखनी में कुछ न कुछ खास बात होती है बस यही वजह है कि जब भी जहाँ भी किसी भी साहित्यकार की रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले ये पढ़ने से नही चुकती |
मंजूषा जी कहती है लेखन एक साधना है जो देश और समाज के हित के लिए होना चाहिए | सभी अपनी कलम की ताकत पहचाने और उसका सही जगह सही दिशा में जरूरत पड़ने पर औजर की तरह भी इस्तमाल करें |
यह कहती है इनके लेखन की प्यास कभी बुझती ही नहीं हर पल इनके मन में यही विचार रहता है कि ये अपनी लेखनी के लिए और क्या कर सकती है |
मंजूषा जी के अपने लेखनी के प्रति दो शब्द-
“चाहत है बस इतनी सी मेरी मैं रहूँ न रहूँ |
मेरी लेखनी की छाप लोगों के दिलों में,
एक खूबसूरत एहसास बनकर समा जाए |
तभी तो मेरा लिखना सार्थक हो पाए ||”
सांझा संकलन- हौसलों की उड़ान,ईश आराधना,पुष्प की अभिलाषा,अयोध्या के राम, त्रिधा, “रिश्तों की डोर भाई दूज”
संस्कार न्यूज,संस्कारधानी समाचार पत्र,हमार संगवारी समाचार पत्र, विकास के दामन में वेदनाएं, वृक्षारोपण:एक संकलन, सरोकार जिंदगी में बधाई गीत, साहित्य दर्पण पत्रिका, परछाई पत्रिका(साझा संकलन),अंतरराष्ट्रीय स्तर की कवितावली पत्रिका आदि पत्र पत्रिकाओं में मौलिक रचनाएं प्रकाशित |
धन्यवाद
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)
8788867704