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पद्याभिनन्दन

पद्याभिनन्दन

संघर्ष में जीना जिसे
स्वीकार है मन से सदा।
आलस्य वश जिनकी न काया
श्रम – विरत होती कदा।
गतिमान पद जिनके न रुकते,
हो न क्यों दृढ़ आपदा।
संगम त्रिपाठी नाम वे,
सन्मार्गगामी सर्वदा।।

निज सोच जिनकी राष्ट्रवादी,
राष्ट्र – हित ही प्रेय है।
निज राष्ट्रभाषा को बनाना,
विश्व – भाषा ध्येय है।
बसता मनस में नित्य जिनके,
जन्म भू का श्रेय है।
संगम त्रिपाठी नाम वे ,
अभिनन्द्य हैं श्रद्धेय हैं।।

मानव – महासंगम कराना,
लक्ष्य जिनका नेक है।
जिनके लिए सत्कर्म पूजन,
देव – वत प्रत्येक है।
प्रिय हिन्द हिन्दी को दिलाना,
मान जिनका टेक है।
संगम वही जिनके लिए,
सब देशवासी एक हैं।।

मुस्कान-चन्दनि सुमुख पर,
जिनके सहज है राजती।
जिनके लिए है पूज्य शाश्वत,
भव्य भारत – भारती।
मति भार जन-कल्याण का,
जिसकी सहज है धारती।
संगम वही नव कीर्ति जिनकी,
विश्व तक है राजती।।

नित जो नवोदित कवि जनों को,
दे रहा सम्मान है।
प्रतिभा पुरुष का नारि का,
रखता निरन्तर ध्यान है।
जिसको सतत निज राष्ट्रभाषा-
धर्म का अभिमान है।
संगम त्रिपाठी नाम जिनको,
कर्म का निज ज्ञान है।।

संगम त्रिपाठी व्यक्ति नहिं,
व्यक्तित्व उच्च विराट हैं।
प्रिय राष्ट्रभाषा – प्रेमियों के ,
वे हृदय – सम्राट हैं।
जिनके मधुर व्यवहार की,
दिखती न कोई काट है।
औदार्य जिससे तुल सके,
ऐसा न कोई बाट है।।

प्रोफेसर मिथिलेश कुमार त्रिपाठी
अध्यक्ष हिन्दी विभाग
स्नातकोत्तर महाविद्यालय पट्टी, प्रतापगढ़ (उ प्र)

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