सृष्टि का मूल जो आधार है सहयोग, वह सात्विक, राजसी और तामसिक तीन प्रकार से समाज में विद्यमान है।
सृष्टि का मूल जो आधार है सहयोग, वह सात्विक, राजसी और तामसिक तीन प्रकार से समाज में विद्यमान है।
1. *सात्विक सहयोग:* नि:स्वार्थ भाव से किया गया सहयोग, जो किसी प्रकार के स्वार्थ या अपेक्षा से मुक्त होता है, सात्विक सहयोग कहलाता है। प्रकृति प्रदत प्रत्येक वस्तुएं व रचनाएं इसी प्रकार के सात्विक सहयोग तथा परोपकार करते हैं जो सभी के लिए एक मापदंड पर सुलभ होता है। एक्का दुक्का मानव में यह सर्वोतम गुण व कार्य पाया जाता है जिसे परोपकार कहते हैं।
2. *राजसी सहयोग:* इस प्रकार के सहयोग में व्यक्ति अपने स्वार्थ, महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए दूसरों को जाति पाती धर्म सम्प्रदाय के भेद भाव ,ऊंच नीच के भावना में उलझाकर तथा उन्हें गुमराहकर कर सहयोग लेता, देता है। धन, पद, राजनैतिक प्रतिष्ठा जैसी चीजें हासिल करने के खातिर लिया, दिया गया सहयोग राजसी सहयोग के श्रेणी में आता है।
3. *तामसिक सहयोग:* यह सहयोग सबसे निम्न स्तर का होता है। इसमें व्यक्ति अपने मोह, लालच, लत और गिरे हुए स्वार्थ को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। नशा, मांसाहार, व्यभिचार, मिलकर करने जैसे काम तामसी सहयोग के उदाहरण हैं।
*डॉ. अभिषेक कुमार*
साहित्यकार व विचारक
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