स्वामी विवेकानंद जयंती पर परिचर्चा
स्वामी विवेकानंद जयंती पर परिचर्चा
कायमगंज…….. महान विचारक एवं कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद की जयंती पर सदवाड़ा कायमगंज में आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने उन्हें विश्व संत बताया। प्रोफेसर रामबाबू मिश्र रत्नेश ने कहा कि 1892 के शिकागो सर्वधर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने वैदिक शून्यवाद पर व्याख्यान दिया जिससे वैचारिक क्रांति का वातावरण बना । उन्होंने मानव को अमृत पुत्र कहा ,सोई हुई चेतना को जगाया ,युवकों को फौलादी जिस्म और लौह इच्छा शक्ति से संपन्न होने की प्रेरणा दी और कहा कि आज हमें अग्नि धर्मा नौजवानों की जरूरत है। पूर्व प्रधानाचार्य अहिवरन सिंह गौर ने कहा कि मात्र 39 साल के जीवन में स्वामी जी ने जो अलौकिक कार्य किये वे सदियों को प्रभावित करते रहेंगे। प्रधानाचार्य शिवकांत शुक्ला ने कहा कि स्वामी जी ने सन्यास की परिभाषा बदल दी और अध्यात्म के सामाजिक आयाम को व्यावहारिक धरातल पर उतार दिया। प्रख्यात गीतकार पवन बाथम ने उनके बहुमुखी चमत्कारी व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला और अपने एक दोहे के माध्यम से उनको याद किया ….
धर्म ध्वजा लहरा गए सात समुंदर पार।
नमन नरेंदर को करे भारत सौ सौ बार।।
अनुपम मिश्रा ने कहा कि
काट दिए भ्रम जाल सब जगा दिया चैतन्य।
संत विवेकानंद से धरा हो गई धन्य।।
पूर्व प्रवक्ता संत गोपाल पाठक ने कहा कि भारत के प्राण शक्ति राज सत्ता में अथवा कलात्मक उपलब्धियां में नहीं बल्कि अध्यात्म में रहती है। डॉ.सुनीत सिद्धार्थ ने कहा कि स्वामी जी का कहना था कि समाज सुधार और राजनीति की शिक्षा धर्म के माध्यम से ही संभव है और वह है मानव धर्म। गोष्ठी में जेपी दुबे ,वी एस तिवारी,कहानीकार अंकुर मिश्रा और लाड़ले मोहन दुबे आदि लोग उपस्थित रहे।