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नेताजी सुभाषचंद्र बोस

नेताजी सुभाषचंद्र बोस

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्वतंत्रता संग्राम के वो सेनानी रहे हैं जिनके भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में दिए गए योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। स्वाधीनता आंदोलन में हजारों देश भक्तों का बहुमूल्य योगदान था परन्तु नेताजी के सम्पूर्ण जीवन का क्रियाकलापों का अध्ययन करें तो शब्दों में व्यक्त करना लिखना नामुमकिन सा होगा।
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था। पिता जानकी दास बोस कलकत्ता से आकर 1885 मे कटक मे बस गये थे बाद में वे कटक के बहुत प्रतिष्ठित वकील बने। यहीं पर सुभाष चन्द्र बोस का जन्म हुआ। सन 1913 में उन्होंने हाई स्कूल तथा 1915 में इंटर की परीक्षाएं उर्तीण कीं। सन 1920 में उन्होंने कैम्बिज (इंग्लैंड) से आई सी एस की परीक्षा पास ही नहीं कि बल्कि चौथा स्थान भी प्राप्त किया। लेकिन 22 अप्रेल 1921 में उन्होंने इस सर्विस से त्याग पत्र दे दिया और भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े।
सन 1921, सन 1924, सन 1929, सन 1931, सन 1932, सन 1936, सन 1940 में अर्थात सन 1921 तथा सन 1941 के मध्य अनेक बार गिरफतार हुए और रिहा हुए। इस दौरान कई बार विदेश की यात्राएं कीं। सन 1932 में उन्होंने यूरोप के देशों की यात्राएं की ताकि भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन को गति मिल सके। लौटते ही गिरफतार हुए। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सन 1938 में गांधी, नेहरू के विरोध के बाद भी वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अघ्यक्ष चुने गये थे। सन 1941 में पुनः विदेश गये। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध उन्होंने जर्मनी, इटली के तत्कालीन तानाशाह हिटलर, मुसोलिनी और जापान तक से सहयोग लिया। उन्होंने अपने बल पर आजाद हिंद फौज,रानी झांसी रेजिमेंन्ट तथा बाल सेना की स्थापना की जो कोई आसान कार्य नहीं था।
29 में 1942 को नेताजी हिटलर से मिले,विचारों में विरोध विरोधाभास के बाद भी हिटलर ने सम्मान के साथ उन्हें विदा किया तथा पनडुब्बी में जर्मनी से जापान पहुंचाया जिसमें तीन महीने का बड़ा कष्ट दायक समय लगा। सन 1944 में मित्र राष्ट्रों की सेना ने युद्ध में इस पनडुब्बी को डुबो दिया था। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस अपनी सेक्रेटरी आस्ट्रेलियाई कैथोलिक परिवार की एमिली शेंकल से 1937 में चुपचाप विवाह कर लिया था। 21 अक्टूबर सन 1943 को उन्होंने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति का पद भार सम्भाला और स्वतंत्र भारत की स्थायी सरकार का सिंगापुर में गठन किया। जिसे जर्मनी, जापान, इटली के साथ अनेक देशों ने मान्यता प्रदान की थी।
18 मार्च 1944 को इम्फाल और कोहिमा में नेताजी की आजाद हिंद फौज और जापान के संयुक्त सैनिकों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंग्रेजों की सेना के साथ जो लड़ाई हुई,वह विश्व की महानतम लड़ाईयों में गिनी जाती है।
द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी की हार के कारण स्तिथि बदल गयी थी। चेल्सी स्थित म्यूसियम में जब विश्व की सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी लड़ाई के लिये वोटिंग हुई तब इस लड़ाई को पहला स्थान प्राप्त हुआ था और वाटर लू की लड़ाई को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ था। इस लड़ाई में माना जाता है 53 हजार सैनिक मारे गये थे। जिसमें भारतीय अधिक थे क्योंकि आजाद हिंद फौज से भी भारतीय लड़ रहे थे और इंग्लैंड की सेना की तरफ से भी भारतीय सैनिक लड़ रहे थे। डॉ लेमैन ने एक स्थान पर कहा की लड़ाई की महानता उसके राजनैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक असर से आँकी जाती है, इस दृष्टि से हम नेता जी की महानता तथा योगदान कर आंकलन कर सकते हैं। रविन्द्र नाथ टैगोर के लिखे गीत “जन गण मन अधिनायक जय हो भारत भाग्य विधाता, पंजाब सिंध गुजरात मराठा” सुभाष चन्द्र बोस को बहुत पसंद था। उन्होंने इसे हिन्दी में रूपांतरित कर अपनी सेना की कैप्टेन लक्ष्मी सहगल व साथियों के सुंदर स्वरों में आजाद हिंद फौज का गीत बनाया।
“शुभ सुख चैन की बरखा बरसे भारत भाग है जागा। पंजाब सिंध गुजरात मराठा द्रविड़ उत्कल बंगा, चंचल सागर बिंध्य हिमालय नीला जमुना गंगा, तेरे नित गुण गाएं तुझसे जीवन पाएं, हर तन पाए आशा। सूरज बनकर जग पर चमके भारत नाम सुभागा। जय हो जय हो जय हो जय जय जय जय हो। सबके दिल में प्रीत बसाए तेरी मीठी वाणी, हर सुबे के रहने वाले हर मजहब के प्राणी, सब भेद और फर्क मिटा के, सब गोद में तेरी आ के गूंथे प्रेम की माला। सूरज बनकर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा। शुभ सबेरे पंख पखेरे तेरे ही गुण गाएं, बास भरी सुगंध भरपूर हवाएं जीवन में रुतलाएं। सब मिलकर हिंद पुकारे,जय हिंद के नारे प्यारा देश हमारा। सूरज बनकर जग पर चमके भारत नाम सुभागा। जय हो जय हो जय हो जय जय जय जय जय हो।”
सोशल मीडिया पर इस गीत को लाखों लोगों ने खूब पसंद किया।
कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 में ताइवान यात्रा के दौरान उनका विमान दुर्घटना ग्रस्त हो गया था जिसमें उनकी मृत्यु हुई। समय समय पर उनकी मृत्यु की जाँच के लिये तीन आयोग गठित हुए जिन पर करोड़ों रूपये व्यय हुए पर अंतिम निर्णय कुछ नहीं निकल पाया। सेवा निवृत न्यायाधीश मनोज मुखर्जी ने अपनी एक जॉच रिपोर्ट में कहा कि नेताजी अब दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी मृत्यु ताइवान के विमान दुर्घटना में भी नहीं हुई थी और जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी अस्थियॉं भी नेताजी की नही हैं। एक जॉच में तो यह भी कहा गया कि उस दिन ताइवान में कोई विमान दुर्घटना हुई ही नहीं थी। लेकिन उनकी मृत्यु की आज तक पुष्ठी नहीं हो पायी।
थाइलैंड से बर्मा फिर सैकड़ों मील का घने जंगलों का रास्ता तय कर आजाद हिंद फौज,जापानी फौज, अंग्रेजों को खदेड़ते इम्फाल पहुंची तो कोहिमा के निकट भयंकर युद्ध हुआ। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 के मध्य लड़ा गया था। इम्फाल के पास मोईरिंग नामक स्थान तथा नागालैंड का कोहिमा नामक पहाड़ी क्षेत्र साक्षी है जहां हजारों सैनिक दफन किए गए नेताजी के महान कार्यों का, आजाद हिंद फौज के अदम्य साहस और वीरता का, उनके ऐतिहासिक संघर्षों का, जबकि जापानी सेना और आजाद हिंद फौज को हार का सामना करना पड़ा था। मोईरिंग के एक मैदान में आज नेताजी की स्मृति मे बना ”इंडियन नेशनल आर्मी म्यूसियम” है वहां पर थाईलैंड, बर्मा से सैकड़ों मील का घने जंगलों का सफर कर अंग्रेजों की फौजों को खदेड़ते हुए आजाद हिंद फौज यहां तक पहुंची थी। यहीं पर सर्व प्रथम नेताजी ने 14 अपैल सन 1944 को स्वतंत्र भारत की घोषणा करते तिरंगा फहराया था तथा ‘दिल्ली चलो’ व ‘तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा दिया था। लेकिन बाद में जापान फौज के पीछे हटने से स्थिति बदल गयी थी। इंडियन नेशनल आर्मी के साथ, म्यूजियम में विभिन्न अवसरों के चित्र तथा मानचित्र के माध्यम से दिखाया गया कि नेताजी ने कलकत्ता, काबुल, मास्को, बर्लिन, सिंगापुर, बैंकोक, बर्मा, अंडमान, टोक्यो की लम्बी यात्राएं कीं, विश्व की प्रमुख हस्तियों के साथ बहुमूल्य अविस्मरणीय ऐतिहासिक चित्र यहाँ म्यूसियम की दीवारों पर टंगे हैं या अलमारियों में रखे हैं। दीवार पर वह समाचार पत्र की बड़ी कटिंग लगी हुई है जिसमे उन 56 सैनिकों, अधिकारियों के नाम अंकित हैं जिन्हें उनकी वीरता साहस के लिए सुभाष चन्द्र बोस ने गैलैन्ट्री अवार्ड प्रदान किए थे। यहां सुभाष चन्द्र बोस के साथ, हिटलर, महात्मा गांधी, नेहरू सहित विश्व की अनेक तत्कालीन हस्तियों, तथा आजाद हिंद फौज के साथ अनेक अवसरों के फोटोग्राफस टंगे हुए हैं। आजाद हिंद फौज के विभिन्न रैंक के सैनिकों की वस्तुएं, आर्मस, अस्त्र शस्त्र, पिस्तौल आदि ऐतिहासिक वस्तुएं यहां दर्शनार्थ रखी हुई हैं। इंडियन नेशनल आर्मी द्वारा जारी नोट जिन पर नेताजी का खूबसूरत चित्र प्रिंट है तथा नेताजी की यूनिफार्म में तांबे की मूर्ति, उनके पत्र सभी को आकर्षित किए बिना नहीं रहते। जिस पाईप के ऊपर नेताजी ने स्वतन्त्र भारत की घोषणा करते हुए झंडा फहराया था आज भी गर्व से खड़ा नजर आता है। हालांकि भगत सिंह, राजगुरू, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्र द्रोखर आजाद जैसे अनेक देश भक्तों ने अपने थोड़े से समय में अपने जीवन की आहुति देश के लिये दी लेकिन सुभाष चन्द्र बोस ने जीवन की सारी सुख सुविधाओं को त्याग कर सन 1921 से लेकर अपने जीवन के अंतिम समय तक 1945 तक 25 वर्षों तक देश की स्वाधीनता के लिये अंग्रेजों से लड़ते संघर्ष रत रहे। उनके जीवनी, उनके कार्यों, उनके व्यक्तिगत प्रयासों का, उनके इतिहास का यदि हम अध्ययन करें तो भारतीय स्वाधीनता संग्राम के ही क्या दुनिया के इतिहास में ऐसा कार्य करने वाला कोई दूसरा व्यक्ति दूर दूर तक नजर नहीं आता। उन्होंने देश की जनता को एकता के सूत्र में पिरोने के लिये स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान अधिकतर भाषण हिंदी में दिये। जाति, धर्म, साम्प्रदायिकता से हटकर उन्होंने हमेशा राष्ट्रीय भावना और राष्ट्रीय एकता की भावना को सर्वोपरि स्थान दिया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम को जब भी याद किया जायेगा उसमें योगदान दिये देश भक्तों और शहीदों को जब भी याद किया जायेगा उसमें सुभाष चन्द्र बोस को सबसे पहले याद किया जायेगा। इस महान क्रान्तिकारी देश भक्त के ऐतिहासिक कार्यों से, त्याग और बलिदान से हमें अपनी पीढ़ी को अवगत कराना चाहिये तथा केन्द्र सरकार को भी चाहिये कि उनके जन्म दिवस पर सार्वजनिक अवकाश हो भले ही किसी अन्य अवकाश में छटनी करनी पड़े।
पूर्व सरकारों द्वारा उनके कार्यो पर हमेशा पर्दा डालकर देश की जनता से छुपाया जाता रहा लेकिल मोदी जी ने सत्ता में आते यह महान कार्य अवश्य किया कि सुभाष चन्द्र बोस से जुड़ी तथा छुपायी गयी समस्त फाईलों को सार्वजनिक कर जनता के सम्मुख लाने का प्रयास किया जिसकी जितनी प्रसंशा की जाये कम होगी। 18 सितंबर 2022 को राजपथ/ अब कर्तव्य पथ पर, मोदी जी के प्रयासों से सुभाष चंद्र बोस की विशाल प्रतिमा स्थापित की गयी, जो उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। देश के ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी को हमारा शत शत नमन है।

– सकलानी साहित्य सदन, विद्यापीठ मार्ग विकासनगर, देहरादून।

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