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भोजपुरी भाषा के कोहिनूर थे___भिखारी ठाकुर जी

भोजपुरी भाषा के कोहिनूर थे___भिखारी ठाकुर जी

बक्सर, १८/दिसम्बर /२०२४, बहुत पुरानी कहावत है कि पूत के पांव पालने देखे जाते हैं.
भगवान घरती सभी को भेजते हैं, तो सभी का कर्म भी निश्चत करके भेजते हैं .
बिहार राज्य सि्थत कुतुबपुर के एक छोटे से गांव मे ठाकुर परिवार अर्थात नाई परिवार में भिखारी ठाकुर जी का जन्म हुआ.
पारिवारिक विवशता में पैतृक काम हजामत बनाना यही काम करना पडता था. परन्तु मन में एक छटपटाहट होती थी, उनका मन कलात्मकता के लिए कुछ करने हेतु बेचैन रहने लगा.
फिर अचानक भिखारी ठाकुर रूपी चिडिय़ा उस गांव से अपनी मंजिल पाने के लिए फुर्र हो गया.
कल का कलकता और आज का कोलकता के लिए चल पडे मन में भगवान को बैठाये, क्यों कि वे भगवान श्री राम जी के लिए अपार श्रद्धा थी,और अपनी कला के लिए विश्वास.
जैसे__तैसे भिखारी ठाकुर जी कलकता पहुंचे. वहां पहुंचकर पहले किसी तरह ठिकाना का जुगाड किये.और फिर अपनी कला को आयाम देने के लिए श्री राम लीला मंडली में काम शुरू किये.
धीरे_धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी.
अपनी कला को अपने भोजपुरिया क्षेत्र में काम करने की ललक ने उन्हें अपने गांव आने पर विवश कर दिया.
बहुत ही कम समय में उनकी मंडली चालू हो गई.
गांव__गांव, शहर_शहर धूम मंच गई.
अपने ही अभिनय करना,नाचना सब करते थे.
तमाशा शुरू करने से पहले भगवान श्री राम का सुमिरन करते थे___ हे रामा हो……..रामा हो रामा…
बिदेशिया,गबरधिचोर, बेटीबेचवा जैसे नाटक से समाज बदलाव का शंखनाद किये.
आरा के मीरगंज मुह्हले में उनका नाटक एवं हम भी देखें है.
भोजपुरी भाषा एवं साहित्य के कोहिनूर पर जितना लिखा जाय , वह कम ही होगा.
ऐसे महान कलाकार की जयंती पर साहित्यकार डॉ ०ओमप्रकाश केसरी पवननन्दन‌ इस विज्ञप्ति के माध्यम से सरकार से करती है कि उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाय।

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