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दोहे

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के कुछ ऐसे सहचर जिन्होंने लंका युद्ध के समय श्री राम का साथ दिया और उनके परम भक्त भी थे।यह सभी देवताओं के अंश थे। ऐसे ही कुछ सहचरों जिनके विषय में लोग कम ही जानते हैं प्रस्तुत हैं मेरे कुछ दोहे –

मयंद सुषेण की तरह,सहचर हों जब साथ।
कोई साथी भी कभी,होगा नहीं अनाथ।।

मित्र राम के थे सभी,देवों के ही अंश।
जिनके कारण है मिटा, लंकापति का वंश।।

विरंचि के आदेश पर, लिया रूप कपि धार।
सबके सब गुणवान थे,शक्ति तन में अपार।।

दधिमुख शशि के अंश थे,वीर मामा सुग्रीव।
मधुवन प्रधान संरक्षक,वाणी मधुर अतीव।।

लंका में रण के समय, दिया राम का साथ।
असुरों से दधि ने किया,रण में दो- दो हाथ।।

द्विविद मयंद महाबली,अश्विन की सन्तान।
सुषेण धर्मी अंश थे, सर्व गुणी गुणवान।।

नील अग्नि के अंश थे,नल शिल्पी के पूत।
इक माता पैदा हुए, शक्ति तन में अकूत।।

सेतु बाँधने में बहुत, दिया श्रम योगदान।
कपियों के थे यूथपति,शिल्पीकार महान।।

पुत्र पर्जन्य देवता ,शरभ बड़े गुणवान।
यमराज अंश थे गवय,परम बली बलवान।।

मादन कुबेर के पुत्र,परम सखा प्रभु राम।
जितने प्रिय प्रभु को भरत,उतना मादन नाम।।

प्रभु से इतना प्रेम था, करें टहल बहु बार।
गिनते सेवा को मगर, खुद पर प्रभु उपकार।।

अगर प्रशंसा भी कभी, करते हैं प्रभु राम।
अपने कार्य को गन्ध, देते सेवा नाम।।

मादन कहते प्रेम से,सुनो वीर प्रभु राम।
कौन भला करता यहाँ,खग खगपति का काम।।

युद्ध अन्त के बाद जब, राम किए आभार।
सबको अन्तिम विदा दी, जाओ घर परिवार।।

कोई जानें को मगर, हुआ नहीं तैयार।
सबके उर में प्रेम था, प्रभु के लिए अपार।।

सबको लेकर साथ में,आए प्रभु निज धाम।
सबका अतिथ्य मान कर,दिए इनाम तमाम।।

मूरति अंतस में बसा, चले गये कुछ धाम।
पर अंगद हनुमान जी, रहे शरण प्रभु राम।।

देखा अंगद प्रेम जब, कृपा सिन्धु भगवान।
माला अंगद को हृदय, दिए भक्त निज मान।।

समझा कर प्रभु ने किया,विदा परम बलवान।
भ्रात संग बहु दूर तक,गए राम भगवान।।

अनुमति ले सुग्रीव से,ठहर गए हनुमान।
प्रभु ने हनुमत को दिया,निज चरणों में स्थान।।

नित प्रभु की सेवा करें, करें राम का ध्यान।
हनुमत को प्रिय राम हैं, प्रभु को प्रिय हनुमान।।

राम नाम रटता सदा, जो नर आठों याम।
बाधा कटती हैं सभी, बनते बिगड़े काम।।

राम जी तिवारी ‘राम’
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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