भारत माँ के अमर सपूत विद्वान, क्रांतिकारी लाला हरदयाल माथुर जी
“मैं किसी विदेशी सरकार की सेवा नहीं करना चाहता, मेरा जीवन भारत माता के लिए है।” ऐसे विचार थे भारत के महान क्रांतिकारी लाला हरदयाल माथुर जी के, जिन्होंने भारतीय युवाओं को देशभक्त आत्मनिर्भरता और स्वराज के लिए प्रेरित किया था। लाला हरदयाल माथुर जी का जन्म 14 अक्टूबर सन् 1984 ई को दिल्ली में हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी छात्र रहे, उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय इंग्लैंड की छात्रवृत्ति हासिल की। उनकी भाषा ज्ञान और तर्क शक्ति एवं शब्दकोश इतना व्यापक था कि अंग्रेज प्रोफेसर भी इन्हें “वॉकिंग एनसाइक्लोपीडिया” यानि चलता फिरता भाषा विश्व कोष कहने लगे थे। सन् 1913 ई. में अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को मैं इन्होंने गदर पार्टी की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई थी। बाद में यह संगठन विदेश में बसे भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में जोड़ने का प्रमुख साधन बना था। उन्होंने युवाओं को प्रेरित कर कहा था कि “युवा ही राष्ट्र की रीढ़ है, उनमें देश के प्रति जोश, त्याग और अनुशासन जागृत करना ही सच्ची सेवा है।” उनके विचारों से प्रभावित होकर हजारों भारतीय युवाओं ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आवाज उठाई। और भारत की स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अमेरिका में “फ्री हिंदुस्तान” नामक पत्रिका की भी शुरुआत की थी, जो भारत की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी विचारों का केंद्र बनी। बाद में ब्रिटिश सरकार ने इस पत्रिका पर भी प्रतिबंध लगवा दिया था। लाला हरदयाल जी भगवत गीता, उपनिषद और विवेकानंद के विचारों से गहराई से प्रेरित थे। उन्होंने मृत्यु से कुछ समय पहले कहा था कि “मैं अपने देश के लिए जिया और उसी के लिए मरूंगा।”
लाला हरदयाल ने अपने अंतिम समय में पारिवारिक जीवन से दूरी बना ली थी और पूर्ण रूप से देश सेवा में संलग्न हो गए थे। वह महात्मा गांधी के जीवन से बहुत प्रभावित थे। उनके पास कुछ जोड़ी कपड़े और ढेर सारी पुस्तके संग्रह में थी। अपने भाषणों में क्रांति और स्वतंत्रता के विचारों से वह लोगों के हृदय में देश के प्रति कुछ करने का जज्बा भर देते थे। वह भारत मां के सच्चे सपूत थे, जिन्होंने विदेशी विदेशी धरती पर भारतीय लोगों को इकट्ठा कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया था और गिरफ्तारी के आदेश भी कई देशों में जारी करवा दिए थे। लाला हरदयाल जी की मृत्यु आज भी रहस्य बनी हुई है। कुछ का मानना है कि इन्हें जहर देकर मारा गया था। जबकि आधिकारिक रूप से उनकी मृत्यु हृदय गति रुकने से बताया गया है। 4 मार्च सन् 1939 को फिलाडेल्फिया, अमेरिका में उनकी मृत्यु हो गई। वह अपने अंतिम दोनों में अपने स्वदेश भारत लौटना चाहते थे, लेकिन ब्रिटिश सरकार द्वारा राष्ट्रद्रोह घोषित करने की वजह से अपने देश भारत नहीं लौट पाए।
आज भी लाला हरदयाल जी के क्रांतिकारी और प्रेरणादायक विचार हमारे अंदर देश प्रेम की ज्योति और आशा का संचार कर देते है। भारत की अद्वितीय मेधा, संस्कृति, सनातनी पद्धति और देश के शूरवीरों पर गर्व करने के लिए प्रेरित करती है। उनकी उनका संपूर्ण जीवन राष्ट्र चेतना और देश की सेवा में समर्पित रहा। ऐसे महान सपूत को में शत-शत नमन वंदन और प्रणाम करता हूं। देश के युवा पीढ़ी से आह्वान करता हूं कि ऐसे महान क्रांतिकारी के बारे में जाने, पढ़ें और युवा पीढ़ी को बताएं ताकि हम अपने महान पूर्वजों की गाथाओं को आने वाली पीढियां को बता सकें।
जय हिंद, जय भारत
भगवान दास शर्मा “प्रशांत”
शिक्षक सह साहित्यकार
इटावा उत्तर प्रदेश
ईमेल: prashantunorg@gmail.com
