कल्पकथा काव्य संध्या में प्रवाहित होती रही भक्ति काव्यगंगा
प्रभु श्री राधा गोपीनाथ जी महाराज की कृपा से संचालित, राष्ट्र प्रथम, हिन्दी भाषा, सनातन संस्कृति, एवं सद साहित्य हेतु कृत संकल्पित कल्पकथा साहित्य संस्था परिवार की संवाद प्रभारी ज्योति राघव सिंह ने बताया कि २१७वीं कल्पकथा साप्ताहिक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी भक्ति प्रसंगों से शोभायमान होती रही।
दो चरणों एवं पांच घंटे से अधिक समय तक चले कार्यक्रम की अध्यक्षता जबलपुर मध्य प्रदेश से जुड़ीं विद्वत साहित्यकार श्रीमती ज्योति प्यासी ने की जबकि देहरादून उत्तराखण्ड से जुड़े वरिष्ठ साहित्यकार नंदकिशोर बहुखंडी ने मुख्य अतिथि का पद भार सम्हाला।
कोंच जालौन के आशुकवि भास्कर सिंह माणिक के मंच संचालन के आयोजन का शुभारंभ श्री विजय रघुनाथराव डांगे द्वारा संगीतमय गुरु वंदना, गणेश वंदना, सरस्वती वंदना, के साथ किया गया। उसके बाद मानों स्वर प्रवाहों को बहते हुए जल की तरह दिशा मिल गई।
रुचिकर भक्ति प्रसंगों के इस आयोजन में कृष्ण सुदामा, राम वनवास, भरत हनुमान मिलाप, मारीच, रावण, एकलव्य, महर्षि बाल्मीकि, आदि पौराणिक पात्रों पर आधारित काव्य रचनाओं में सृजनकारों की शब्द वंदना गतिमान होती रही।
पण्डित अवधेश प्रसाद मिश्र मधुप ने माँ भगवती के दर्शनों को लालायित मन के भाव प्रकट करते हुए कहा “मैं तरसता था तेरे दरस के लिए सामने हो खड़ी अब दरस मिल गया।”
विष्णु शंकर मीणा ने काव्य रचना “त्रेता युग में धन्य भाग्य” सुनाते हुए वातावरण को ईश्वर की कृपा से आलोकित कर दिया।
विजय रघुनाथराव डांगे ने महर्षि बाल्मीकि को समर्पित रचना में बताया “भक्ति राम की अकथ कहानी, अमृतरस गुरुज्ञान वानी, भवसागर पार करे प्रभु श्री राम विजय हरि नाम।”
अमित पण्डा अमिट रोशनाई ने कृष्ण सुदामा प्रसंग को शब्दों में उकेरते हुए घनाक्षरी छंद में शब्द देते हुए “अपने ही हाथन से एक – एक पग धोए, करत श्रृंगार ओके बनवारी है।” भावपूर्ण स्वर में गाया।
डॉ अंजू सेमवाल ने राम वनवास के दृश्य को उकेरते हुए कहा “जब होना था राजतिलक तब वन को गए रघुराई।”
भगवानदास शर्मा प्रशांत ने भाव रचना सुनाते हुए “आदि से अनंत तक राम में रमा है सब, राम के प्रसार को न कोई समझ पाया है।” से सभी को भाव विभोर कर दिया।
कल्पकथा परिवार से पवनेश मिश्र ने भरत हनुमान मिलाप को राधेश्यामी छंद में शब्द देते हुए “प्रति पल पूजा प्रति क्षण सेवा प्रति स्वास राम आभारी है। दो भक्त मिले जो भजें राम कहते धन्य धन्य अधिकारी हैं।।”
इनके अलावा प्रमोद पटले, डॉ श्याम बिहारी मिश्र, शोभा प्रसाद, सुनील खुराना, डॉ मंजू शकुन खरे, डॉ शशि जायसवाल, रमेश चंद्र गौतम, सांद्रा लुटावन गणेश, आचार्य राहुल द्विवेदी, नन्द किशोर बहुखंडी, ज्योति प्यासी, भास्कर सिंह माणिक, दीदी राधा श्री शर्मा, आदि ने काव्य पाठ किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में ज्योति प्यासी ने सहभागी सृजनकारों की भूरि – भूरि प्रशंसा करते हुए काव्य संध्या को सफल बताया। वहीं मुख्य अतिथि नंदकिशोर बहुखंडी ने आयोजन पर संतोष प्रकट करते हुए सभी साहित्यकारों से कार्यक्रमों में जुडकर अधिक से अधिक रचनाओं को सुनने की अनुशंसा की।
दीदी श्रीमती राधा श्री शर्मा जी ने सभी सहभागी सृजनकारों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि भगवान भक्तों की निष्काम भक्ति से स्वयं बंध जाते है इसीलिए कहा जाता है कि भक्ति की शक्ति से सब कुछ संभव है। अंत में “सर्वे भवन्तु सुखिन:” की सर्व मंगल कामना के साथ कार्यक्रम को विश्राम दिया।
